ग्रहों का परिचय (Planets Introduction) - Tech Science Go

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Monday, May 14, 2018

ग्रहों का परिचय (Planets Introduction)


'ग्रह' शब्द ग्रीक शब्द से आता है जिसका अर्थ है 'वंडरर'। सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर एक निश्चित अंडाकार पथ कक्षा में घूमते हैं। सूर्य के चारों ओर एक क्रांति (चक्कर) को पूरा करने के लिए ग्रहो द्वारा लिया गया समय क्रांति (चक्कर) की अवधि के रूप में जाना जाता है। ग्रह भी अपनी धुरी पर घूमते हैं। एक घूर्णन को पूरा करने के लिए ग्रह द्वारा लिया गया समय उस घूर्णन की अवधि कहा जाता है।




ग्रहों के पास स्वयं का प्रकाश नहीं  होता है। वे सूरज की रोशनी से स्वयं को प्रकाशित करते हैं जो उन पर पड़ता है। वे सितारों की तरह चमकते नहीं हैं और ग्रह अपनी स्थिति बदलते रहते हैं। ग्रहो के चारों ओर जो पिंड घूमता है उसे उपग्रह कहा जाता है। जैसे चंद्रमा पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह है।

सौरमंडल 

सौरमंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुए उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीयमण्डल कहा जाता है जो तारे न हों, जैसे की ग्रहछोटे ग्रहप्राकृतिक उपग्रहक्षुद्रग्रहउल्काधूमकेतु और खगोलीय धूल हमारे सूर्य और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौरमण्डल बनता है। इस सौरमंडल में केवल सूर्य ही एकमात्र तारा है इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच छोटे ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीले  पिंडधूमकेतुउल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं।
सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यत: पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह विशाल गैस से बने होते हैं। सौर मण्डल का अस्तित्व जानने में कई हजार वर्ष लग गए। सन 1543 में कॉपरनिकस ने बताया की सूर्य ब्रह्माण्ड के केंद्र में है और सारे ग्रह, पिंड इसकी परिकृमा करते हैं। सौरमंडल, सूर्य और उसकी परिक्रमा करते ग्रह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं से बना है। इसके केन्द्र में सूर्य है और सबसे बाहरी सीमा पर वरुण (ग्रह) है। वरुण के परे यम (प्लुटो) जैसे बौने ग्रहो के अतिरिक्त धूमकेतु भी आते हैं।

 सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौर मंडल के केन्द्र में स्थित एक मुख्य तारा है जिसके इर्द-गिर्द पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है, जिसमें हमारे पूरे सौर मंडल का 99.86% द्रव्यमान निहित है और इसका व्यास लगभग 13 लाख 90 हज़ार किलोमीटर है, जो पृथ्वी से लगभग 109 गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। सूर्य परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से 15 प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती है, 30 प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आती है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे तथा समुद्र द्वारा सोख ली जाती हैं।

 सौर वायु

सौरमंडल सौर वायु द्वारा बनाए गए एक बड़े बुलबुले से घिरा हुआ है जिसे हीलीयोस्फियर कहते है। इस बुलबुले के अंदर सभी पदार्थ सूर्य द्वारा उत्सर्जित हैं। अत्यंत ज़्यादा उर्जा वाले कण इस बुलबुले के अंदर हीलीयोस्फीयर के बाहर से प्रवेश कर सकते हैं।
यह किसी तारे के बाहरी वातावरण द्वारा उत्सर्जन किए गए, आवेशित कणों की धारा को सौर वायु कहते हैं। सौर वायु विशेषकर अत्यधिक उर्जा वाले इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन से बनी होती है, इनकी उर्जा किसी तारे के गुरुत्व प्रभाव से बाहर जाने के लिए पर्याप्त होती है। सौर वायु सूर्य से हर दिशा में प्रवाहित होती है जिसकी गति लगभग सौ किलोमीटर प्रति सेकंड होती है। सूर्य के सन्दर्भ में इसे सौर वायु कहते हैं, अन्य तारों के सन्दर्भ में इसे ब्रह्माण्ड वायु कहते हैं। यम (बौना ग्रह) से काफी बाहर सौर वायु खगोलीय माध्यम (जो हाइड्रोजन और हिलीयम से बना हुआ है) के प्रभाव से धीमी हो जाती है। यह प्रक्रिया कुछ चरणों में होती है। खगोलीय माध्यम सारे ब्रह्माण्ड में फैला हुआ है। यह एक अत्यधिक कम घनत्व वाला माध्यम है। सौर वायु सुपर सोनिक गति से धीमी होकर सब-सोनिक गति में आने वाले चरण को समाप्ती चरण कहते हैं। सब-सोनिक गति पर सौर वायु खगोलीय माध्यम के प्रवाह के प्रभाव में आने से दबाव होता है जिससे सौर वायु धूमकेतु की पुंछ जैसी आकृती बनाती है जिसे हीलिओसिथ कहते हैं। हीलिओसिथ की बाहरी सतह जहां हीलीयोस्फियर खगोलीय माध्यम से मिलता है हीलीयोपाज कहलाती है। हीलीओपाज क्षेत्र सूर्य के आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा के दौरान खगोलीय माध्यम में एक हलचल उत्पन्न करता है। यह खलबली वाला क्षेत्र जो हीलीओपाज के बाहर है बो-शाक या धनु कहलाता है।

ग्रहीयमण्डल

ग्रहीय मण्डल उसी प्रक्रिया से बनते हैं जिससे तारों की सृष्टि होती है। आधुनिक खगोलशास्त्र में माना जाता है कि जब अंतरिक्ष में कोई अणुओं का बादल गुरुत्वाकर्षण से सिमटने लगता है तो वह किसी तारे के इर्द-गिर्द एक आदिग्रह चक्र बना देता है। पहले अणु जमा होकर धूल के कण बना देते हैं, फिर कण मिलकर बड़े कण बन जाते हैं। गुरुत्वाकर्षण के लगातार प्रभाव से, इन बड़े कणों में टकराव और जमाव होते रहते हैं और ये धीरे-धीरे मलबे के बड़े-बड़े टुकड़े बन जाते हैं जो वक़्त से साथ-साथ ग्रहों, उपग्रहों और अलग वस्तुओं का रूप धारण कर लेते हैं। जो वस्तुएँ बड़ी होती हैं उनका गुरुत्वाकर्षण बल ताक़तवर होता है और वे अपने-आप को सिकोड़कर एक गोले का आकार धारण कर लेती हैं। किसी ग्रहीय मण्डल के सृजन के पहले चरणों में यह ग्रह और उपग्रह कभी-कभी आपस में टकरा भी जाते हैं, जिससे कभी तो वह टूट जाते हैं और कभी जुड़कर और बड़े हो जाते हैं। माना जाता है कि हमारी पृथ्वी के साथ एक मंगल ग्रह जितनी बड़ी वस्तु का भयंकर टकराव हुआ, जिससे पृथ्वी का बड़ा सा सतही हिस्सा उखाड़कर पृथ्वी के इर्द-गिर्द परिक्रमा करने लगा और धीरे-धीरे जुड़कर हमारा चन्द्रमा बन गया।

ग्रह-

बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, यम ये सभी हमारे सौर मंडल के ग्रह हैं। लेकिन, 2006 में, अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ ने प्लूटो (यम) को "बौने ग्रह" को ग्रहों की श्रेणी से हटाने का फैसला किया, तो अब हमारे सौर मंडल में वास्तविक ग्रहों की संख्या आठ है। इन आठ ग्रहों को शास्त्रीय ग्रह कहा जाता है और उन्हें आंतरिक और बाहरी ग्रहों में विभाजित किया जा सकता है।
आंतरिक ग्रह या स्थलीय ग्रहों में बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल शामिल है। ये ग्रह सूरज के करीब हैं, और घने हैं क्योंकि ये चट्टानों से बने हैं। बाहरी ग्रह या जोवियन ग्रह बड़े होते हैं और सूर्य से बहुत दूर होते हैं। वे ज्यादातर गैसों से बने होते हैं, हल्के होते हैं और उनके चारों ओर छल्ले होते हैं। बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण बाहरी ग्रह हैं।

बुध

बुध सौर मंडल का सूर्य से सबसे निकट स्थित और आकार में सबसे छोटा ग्रह है। यम(प्लूटो) को पहले सबसे छोटा ग्रह माना जाता था पर अब इसका वर्गीकरण बौना ग्रह के रूप में किया जाता है। यह रंग में पीला-नारंगी है। इसकी घूमती गति सभी ग्रहों में सबसे तेज़ है। यह हमारे सौर मंडल का सबसे छोटा ग्रह है। हम इसे हर समय नहीं देख सकते क्योंकि यह सूरज की चमक में छिपा हुआ है। बुध का अपना उपग्रह नहीं है।

यह सूर्य की एक परिक्रमा करने में 88 दिन लगाता है। यह लोहे और जस्ते का बना हुआ हैं। यह अपने परिक्रमा पथ पर 29 मील प्रति क्षण की गति से चक्कार लगाता हैं। बुध सूर्य के सबसे पास का ग्रह है और द्रव्यमान की बात करे तो यह आंठवे क्रम पर है।
ग्रहपथ :  57910000 किमी , सूर्य से व्यास : 4880 किमी द्रव्यमान : 3.30e23 किग्रा

शुक्र

शुक्र सभी ग्रहों में सबसे चमकीला है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह उस पर गिरने वाले सूर्य प्रकाश का लगभग 75% दर्शाता है। यह हमारे सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह भी है क्योंकि इसके वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है और यह उस गर्मी को अपने अन्दर संचित करने की प्रवृत्ति रखता है। इस प्रभाव को ग्रीन हाउस प्रभाव के रूप में जाना जाता है। यह कभी-कभी सूर्योदय से पहले और कभी-कभी पश्चिमी भाग में सूर्यास्त के बाद आकाश के पूर्वी हिस्से में दिखाई देता है। इसलिए, इसे सुबह या शाम का तारा भी कहा जाता है। शुक्र पूर्व से पश्चिम तक घूमता है। इसका अपना उपग्रह नहीं है। इस ग्रह में जीवन संभव नहीं है।
इसका परिक्रमा पथ 108¸200¸000 किलोमीटर लम्बा है। इसका व्यास 12¸103•6 किलोमीटर है। शुक्र सौर मंडल का सबसे गरम ग्रह है। शुक्र का आकार और बनाबट लगभग पृथ्वी के बराबर है। इसलिए शुक्र को  पृथ्वी की बहन भी कहा जाता है।
ग्रहपथ :0.72 AU या 108,200,000 किमी (सूर्य से)। व्यास : 12,103.6 किमी द्रव्यमान : 4.869e24 किग्रा

पृथ्वी

पृथ्वी सौर मंडल का एकमात्र ग्रह है जिस पर जीवन अस्तित्व में पाया जाता है। पृथ्वी पर जीवन के जीवित रहने के लिए जिम्मेदार तीन कारक हैं
सूर्य से उचित दूरी,
उचित तापमान सीमा, और
पानी की उपस्थिति, एक उपयुक्त वातावरण और ओजोन का एक कंबल जो हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाता है।
सुर्य से पृथ्वी की औसत दूरी को खगोलीय इकाई कहते हैं। ये लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है।अंतरिक्ष से, पृथ्वी अपनी सतह पर पानी और भूमिगत से प्रकाश के प्रतिबिंब के कारण नीली-हरी दिखाई देती है। इसलिए इसे नीला ग्रह भी कहते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है जो 23.5 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है। यह झुकाव हमेशा एक ही दिशा में रहता है और मौसम में बदलाव के लिए जिम्मेदार है। धरती में केवल एक प्राकृतिक उपग्रह-चंद्रमा है।

मंगल

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। इस ग्रह में बड़ी मात्रा में लौह ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण यह थोड़ा लाल दिखाई देता है। तथा पृथ्वी से इसकी आभा लाल दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस होती है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण पृथ्वी से काफी मिलता जुलता है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वतओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र भी पृथ्वी के समान हैं।
सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। मंगल में दो छोटे प्राकृतिक उपग्रह हैं जो इसके चारों ओर घूमते हैं। वे फोबोस और डीमोस हैं।

बृहस्पति

बृहस्पति सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह इतना बड़ा है कि लगभग 1300 धरती इसके अंदर रखी जा सकती है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान के लगभग 318 गुना है। इसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनिअरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार पहले चार ग्रहों की तुलना में यह बहुत कम ऊर्जा प्राप्त करता है। इसकी एक बड़ी लाल जगह है, जिसे इसकी सतह पर 'द ग्रेट रेड स्पॉट' कहा जाता है जो वास्तव में एक विशाल तूफान है। बृहस्पति शाम को एक बहुत ही उज्ज्वल वस्तु के रूप में देखा जा सकता है। यह बहुत उज्ज्वल लगता है क्योंकि इसमें एक मोटा वातावरण है जो उस पर गिरने वाली अधिकांश सूर्यप्रकाश को दर्शाता है। इसके वायुमंडल में मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसे शामिल हैं, इस ग्रह पर जीवन संभव नहीं है क्योंकि इसमें बहुत कम तापमान और बहुत अधिक गुरुत्वाकर्षण बल है। बृहस्पति में 67 ज्ञात प्राकृतिक उपग्रह हैं, जिनमें से चार बड़े उपग्रहों को टेलीस्कोप की मदद से देखा जा सकता है।

शनि

शनि सौर मंडल का छठा सबसे बड़ा ग्रह है। इसके कक्षीय परिभ्रमण का पथ 142940000 किलोमीटर है।  शनि ग्रह की खोज प्राचीन काल में ही हो गई थी। गैलीलियो गैलिली ने सन् 1610 में दूरबीन की सहायता से इस ग्रह को खोजा था। शनि ग्रह की रचना 75% हाइड्रोजन और 25% हीलियम गैस से हुई है। जलमिथेनअमोनिया और पत्थर आदि यहाँ बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं। सूर्य से शनि की दूरी सूर्य से बृहस्पति की दूरी की लगभग दोगुनी है और इसलिए यह बहुत ठंडा है। शनि की अनूठी विशेषताओं में से एक यह है कि इसके चारो ओर छल्ले की उपस्थिति है जो वास्तव में धूल के छोटे कण और बर्फ के कण हैं ये सभी कण चारों ओर एक तेज गति से घूमते हैं। शनि की अंगूठी प्रणाली इसे सौर मंडल में सबसे खूबसूरत वस्तुओं में से एक बनाती है। इन अंगूठियों को दूरबीन की मदद से देखा जा सकता है।
बहुत कम तापमान के कारण, शनि पर जीवन संभव नहीं है। शनि के 62 ज्ञात प्राकृतिक उपग्रह हैं।  जिसमें टाइटन सबसे बड़ा है। टाइटन बृहस्पति के उपग्रह गिनिमेड के बाद दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है।

अरुण

अरुण या युरेनस हमारे सौर मण्डल में सूर्य से सातवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का तीसरा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर चौथा बड़ा ग्रह है। द्रव्यमान में यह पृथ्वी से 14.5 गुना अधिक भारी और अकार में पृथ्वी से 63 गुना अधिक बड़ा है। औसत रूप में देखा जाए तो यह पृथ्वी से बहुत कम घना है - क्योंकि पृथ्वी पर पत्थर और अन्य भारी पदार्थ अधिक प्रतिशत में हैं जबकि अरुण पर गैस अधिक है। इसीलिए पृथ्वी से 63 गुना बड़ा अकार रखने के बाद भी यह पृथ्वी से केवल 14.5 गुना भारी है। बेहद कम तापमान के कारण इस ग्रह पर कोई जीवन संभव नहीं है। यूरेनस भी शुक्र की भाति  पूर्व से पश्चिम की ओर घूमता है। यूरेनस में अत्यधिक झुका हुआ घूर्णन अक्ष होता है, जिसके कारण इसकी कक्षीय गति के दौरान इसकी तरफ रोल होता है। यह अपने वातावरण में मीथेन की उपस्थिति के कारण रंग में हरा दिखाई देता है। यह वातावरण बर्फ के रूप में गैसीय रूप और पानी और अमोनिया में हाइड्रोजन और हीलियम की उपस्थिति भी दिखाता है।  हालांकि अरुण को बिना दूरबीन के आँख से भी देखा जा सकता है, यह इतना दूर है और इतनी माध्यम रोशनी का प्रतीत होता है कि प्राचीन विद्वानों ने कभी भी इसे ग्रह का दर्जा नहीं दिया और इसे एक दूर टिमटिमाता तारा ही समझा। 13 मार्च 1781 में विलियम हरशल ने इसकी खोज की घोषणा करी। यूरेनस में 27 ज्ञात चंद्रमा हैं।

वरुण

सूर्य से दूरी के क्रम में नेप्च्यून (वरुण) आठवां ग्रह है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 171 गुना है। बहुत कम तापमान के कारण इस ग्रह पर कोई जीवन संभव नहीं है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में 164 वर्षो का समय लगता है नेप्च्यून का नीला रंग यूरेनस जैसे वायुमंडल में मीथेन की उपस्थिति के कारण है, लेकिन फिर भी इसकी ज्वलंत उदासीनता का कारण एक रहस्य है। नेप्च्यून के पास 13 ज्ञात चंद्रमा घूमते हैं। इस ग्रह की अंगूठी प्रणाली अच्छी तरह से विकसित नहीं है।


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