उन संक्रामक महामारियों को विश्वमारी कहते हैं जो एक बहुत बड़े भूभाग (जैसे कई महाद्वीपों में) में फैल चुकी हो। यदि कोई रोग एक विस्तृत क्षेत्र में फैल हुआ हो किन्तु उससे प्रभावित लोगों की संख्या में वृद्धि ना हो रही हो, तो उसे विश्वमारी नहीं कहा जाता। इसके अलावा, उस फ्लू को विश्वमारी में शामिल नहीं किया जाता जो मौसमी किस्म के हो और बार-बार होते रहे हों। सम्पूर्ण इतिहास में चेचक और तपेदिक जैसी असंख्य विश्वमारियों का विवरण मिलता है। एचआईवी (HIV) और 2009 का फ्लू विश्वमारियों के उदाहरण हैं। हाल ही में 12 मार्च, 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोनावायरस को विश्वमारी घोषित किया है। 14वीं शतब्दी में फैली 'ब्लैक डेथ' नामक विश्वमारी अब तक की सबसे बड़ी विश्वमारी थी जिससे अनुमानतः साढ़े सात करोड़ से लेकर 20 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई थी।
विश्व
स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ (WHO)) ने छः चरणों वाले एक वर्गीकरण का निर्माण किया है जो उस प्रक्रिया का
वर्णन करता है जिसके द्वारा एक नया इन्फ्लूएंज़ा विषाणु, मनुष्यों
में प्रथम कुछ संक्रमणों से होते हुए एक विश्वमारी की तरफ आगे बढ़ता है। खास तौर
पर पशुओं को संक्रमित करने वाले विषाणुओं से इस रोग की शुरुआत होती है और कुछ ऐसे
मामले भी सामने आते हैं जहां पशु, लोगों को संक्रमित करते
हैं, उसके बाद यह रोग उन चरणों से होकर आगे बढ़ता है जहां
विषाणु प्रत्यक्ष रूप से लोगों के बीच फैलने लगता है और अंत में एक विश्वमारी का
रूप धारण कर लेता है जब नए विषाणु से होने वाला संक्रमण पूरी दुनिया में फ़ैल जाता
है।
कोई भी बीमारी सिर्फ इसलिए विश्वमारी नहीं कहलाती है क्योंकि
यह बड़े पैमाने पर फैलती है या इससे कई लोगों की मौत हो जाती है बल्कि इसके
साथ-साथ इसका संक्रामक होना भी बहुत जरूरी है। उदाहरण के लिए, कैंसर से कई लोगों की मौत होती है लेकिन इसे एक विश्वमारी नहीं कहा जा
सकता है क्योंकि यह रोग संक्रमणकारी या
संक्रामक नहीं है।
वर्तमान विश्वमारियां
2009 इन्फ्लूएंज़ा ए/एच1एन1 (A/H1N1)
इन्फ्लूएंज़ा ए विषाणु
उपप्रकार एच1एन1 (H1N1) की एक नई नस्ल
के 2009 के प्रकोप ने इस चिंता को जन्म दिया कि एक नई विश्वमारी फ़ैल रही थी। 11
जून 2009 को विश्व
स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक, डॉ॰ मार्गरेट चान, ने अपने बयान में इस बात की
पुष्टि की कि एच1एन1 वास्तव में एक विश्वमारी है जिसके दुनिया भर में लगभग 30,000 मामलों के सामने आने की पुष्टि हो चुकी है।
एचआईवी (HIV) और एड्स (AIDS)
लगभग 1969 के आरम्भ
में, एचआईवी, अफ्रीका
से और उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया के अधिकांश शेष हिस्सों में फ़ैल
गया। जिस एचआईवी नामक
विषाणु की वजह से एड्स होता है, वह वर्तमान में एक विश्वमारी है जिसका
संक्रमण दर दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में ज्यादा से ज्यादा 25% है। 2006 में दक्षिण अफ्रीका में
गर्भवती महिलाओं में एचआईवी होने की दर 29.1% थी। सुरक्षित
यौन कर्मों के बारे में प्रभावी शिक्षा और रक्तवाहक संक्रमण सावधानी प्रशिक्षण ने संक्रमण
दर की गति को धीमा करने में मदद किया है। एशिया और अमेरिका में संक्रमण दर में फिर
से वृद्धि हो रही है। संयुक्त राष्ट्र के आबादी शोधकर्ताओं के अनुमान के अनुसार,
2025 तक एड्स से भारत में
31 मिलियन और चीन में 18 मिलियन लोगों की मौत हो सकती है। अफ्रीका में
एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या 2025 तक 90-100 मिलियन तक पहुंच सकती है।
विश्वमारियां और महामारियाँ
मानव इतिहास में
असंख्य महत्वपूर्ण विश्वमारियां दर्ज है जिसमें से आम तौर पर इन्फ्लूएंज़ा और
तपेदिक(टीवी), का नाम लिया जाता है ऐसी असंख्य
महत्वपूर्ण महामारियां हैं जो शहरों की बर्बादी से कहीं ऊपर होने की वजह से उल्लेख करने
लायक है:
हैजा (कोलेरा)
· प्रथम हैजा विश्वमारी 1816-1826. पहले भारतीय उपमहाद्वीप से दूर रहने वाली विश्वमारी की शुरुआत बंगाल में हुई थी, उसके बाद यह 1820 तक यह सम्पूर्ण भारत में फ़ैल गया था। इस विश्वमारी के दौरान 10,000 ब्रिटिश सैनिकों और अनगिनत भारतीयों की मौत हुई थी। इसका प्रकोप कम होने से पहले इसका विस्तार चीन, इंडोनेशिया और कैस्पियन सागर तक हो गया था। 1860 और 1917 के बीच भारत में इससे मरने वाले लोगों की संख्या 15 मिलियन से अधिक होने का अनुमान है। 1865 और 1917 के बीच 23 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसी अवधि के दौरान इस रोग से मरने वाले रूसी लोगों की संख्या 2 मिलियन से अधिक थी।
·
द्वितीय हैजा
विश्वमारी 1829-1851. 1831 में यह रोग रूस, हंगरी
और जर्मनी में (लगभग 100,000 मौतें), 1832
में लन्दन (55,000 से ज्यादा लोगों की मौतें) में, उसी वर्ष फ़्रांस, कनाडा
और संयुक्त राज्य अमेरिका (न्यूयॉर्क) में, और 1834 तक
उत्तरी अमेरिका के पैसिफिक कोस्ट तक फ़ैल गया। 1848 में इंग्लैण्ड और वेल्स में
एक दो-वर्षीय प्रकोप का आरम्भ हुआ जिसने 52,000 लोगों की जान
ले ली।
·
तृतीय विश्वमारी
1852-1860. मुख्य रूप से रूस प्रभावित हुआ था जहां एक मिलियन से अधिक लोगों की मौत हुई थी। 1852 में,
हैजा पूर्व से इंडोनेशिया तक
फ़ैल गया था और बाद में 1854 में इसने चीन और जापान पर
हमला कर दिया था। फिलीपींस 1858 में और कोरिया 1859
में इसकी चपेट में आ गया था।
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चतुर्थ विश्वमारी
1863-1875. ज्यादातर अफ्रीका और यूरोप में फैला था। 90,000 मक्का तीर्थयात्रियों
में से कम से कम 30,000 इस रोग की चपेट में आ गए थे। हैजे से
1866 में रूस में 90,000 लोगों की मौत हुई थी। 1866 में,
उत्तरी अमेरिका में इसका प्रकोप हुआ था। इससे लगभग 50,000 अमेरिकियों की मौत हो गई थी।
·
पांचवीं विश्वमारी
1881-1896. 1883-1887 की महामारी की वजह से यूरोप में 250,000 और अमेरिका में कम से कम 50,000 लोगों को अपना जान से हाथ धोना
पड़ा. हैजे ने रूस (1892) में 267,890 स्पेन में 120,000 जापान में
90,000; और फारस में
60,000 लोगों की जानें ले ली।
·
छठवीं विश्वमारी
1899-1923. सार्वजनिक स्वास्थ्य में प्रगति होने की वजह से यूरोप में इसका थोड़ा
कम प्रभाव पड़ा था, लेकिन रूस पर एक बार फिर इसका बहुत बुरा
प्रभाव पड़ा था (20वीं सदी की पहली एक चौथाई अवधि के दौरान हैजे से 500,000 से ज्यादा लोग मर रहे थे)। छठवीं
विश्वमारी से भारत में 800,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।
1902-1904 की हैजा महामारी में फिलीपींस में
200,000 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. 19वीं सदी से 1930 तक मक्का की
तीर्थयात्रा के दौरान 27 महामारियों को दर्ज किया गया था और 1907–08 हज के दौरान हैजे से 20,000 से अधिक
तीर्थयात्रियों की मौत हुई थी।
·
सातवीं विश्वमारी
1962-66. जिसकी शुरुआत इंडोनेशिया में हुई थी, जिसे इसकी भयावहता के आधार पर एल टोर (El
Tor) नाम दिया गया और जिसने 1963 में बांग्लादेश, 1964
में भारत और 1966 में सोवियत
संघ में प्रवेश किया था।
इन्फ्लूएंज़ा
·
"चिकित्सा के
जनक" के नाम से विख्यात यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स ने
सबसे पहले 412 ई.पू. में इन्फ्लूएंज़ा का वर्णन किया।
·
प्रथम इन्फ्लूएंज़ा
विश्वमारी को 1580 में दर्ज किया गया था और तब से हर 10 से 30 साल के भीतर
इन्फ्लूएंज़ा विश्व्मारियों का प्रकोप होता रहा है।
·
"एशियाई
फ्लू", 1889-1890, की
पहली रिपोर्ट मई 1889 में उजबेकिस्तान के बुखारा में
मिली थी। अक्टूबर तक, यह टॉम्स्क और काकेशस तक पहुंच गया था।
यह पश्चिम में तेजी से फैलता चला गया और दिसंबर 1989 में उत्तरी अमेरिका, फरवरी-अप्रैल
1890 में दक्षिण अमेरिका, फरवरी-मार्च 1890 में भारत और
मार्च-अप्रैल 1890 में ऑस्ट्रेलिया भी इसकी चपेट में आ गया। यह अनुमानतः फ्लू
विषाणु के एच2एन8 (H2N8) प्रकार की वजह
से हुआ था। इसका हमला काफी घातक था और इससे मरने वालों की मृत्यु दर भी काफी अधिक
थी। लगभग 1 मिलियन लोग इस विश्वमारी में मारे गए।
·
"स्पेनी
फ्लू", 1918-1919. सबसे पहली इसकी पहचान मई
1918 के आरम्भ में कंसास के कैम्प फंस्टन की अमेरिकी सैन्य परीक्षण केंद्र में की गई थी। अक्टूबर
1918 तक, सभी महाद्वीपों में फैलकर इसने एक विश्वव्यापी
विश्वमारी का रूप धारण कर लिया था और अंत में इसने लगभग एक-तिहाई वैश्विक जनसंख्या
( लगभग 500 मिलियन व्यक्ति) को संक्रमित कर दिया। असामान्य
रूप से इस घातक और विषमयकारी रोग का अंत लगभग उतनी ही जल्दी हुआ जितनी जल्दी इसकी
शुरुआत हुई थी जो 18 महीनों के भीतर पूरी तरह से गायब हो गया। छः महीनों में,
लगभग 50 मिलियन लोग मारे गए कुछ लोगों
के अनुमान के अनुसार दुनिया भर में मारे गए लोगों की कुल संख्या इस संख्या की
दोगुनी से अधिक थी। भारत में लगभग 17 मिलियन, अमेरिका में
675,000 और ब्रिटेन में 200,000 लोग मारे गए। अभी हल ही में सीडीसी (CDC) के
वैज्ञानिकों ने इसके विषाणु का पुनर्निर्माण किया जिसके अध्ययन अलास्का के
पर्माफ्रॉस्ट (जमी हुई जमीन) के माध्यम से सुरक्षित रखा गया है। उन्होंने इसकी
पहचान एक प्रकार के एच1एन1 (H1N1) विषाणु
के रूप में की।
·
"एशियाई
फ्लू", 1957-58. एक एच2एन२ (H2N2) विषाणु की वजह से संयुक्त राज्य अमेरिका में
लगभग 70,000 लोग मारे गए। सबसे पहले फरवरी 1957 के अंतिम दौर
में चीन में पहचानी गई इस एशियाई फ्लू का प्रसार जून 1957 तक संयुक्त राज्य
अमेरिका तक हो गया था। इसकी वजह से दुनिया भर में लगभग 2 मिलियन लोग मारे गए।
·
"हांगकांग
फ्लू", 1968-69. एक एच3एन2 (H3N2) की वजह से संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 34,000 लोग मारे गए। इस विषाणु का पता सबसे पहले 1968 के आरम्भ में हांगकांग
में लगा था और बाद में उसी वर्ष यह संयुक्त राज्य अमेरिका में फ़ैल गया। 1968 और
1969 की इस विश्वमारी से दुनिया भर में लगभग दस लाख लोग मारे गए। इन्फ्लूएंज़ा ए (एच3एन2) विषाणु आज भी फ़ैल रहे हैं।
सन्निपात (टाइफ़स)
सन्निपात को संघर्ष
दौरान फैलने की पद्धति की वजह से इसे कभी-कभी "शिविर बुखार" कहा जाता
है। (इसे "जेल बुखार" और "जहाज बुखार" के नाम से भी जाना जाता
है क्योंकि यह छोटे-छोटे क्वार्टरों, जैसे
- जेलों और जहाज़ों, के क्वार्टरों में बहुत बुरी तरह से
फैलता है।) 1528 में, फ़्रांस को 18,000 सैनिकों को खोना पड़ा और स्पेनियों के हाथों
इटली में अपना वर्चस्व भी खोना पड़ गया। 1542 में, बाल्कन
में ऑटोमन से लड़ते समय सन्निपात से 30,000 सैनिकों की मृत्यु
हो गई।
सन्निपात महामारी से
1918 से 1922 तक रूस में लगभग 25 मिलियन लोग संक्रमित हुए थे और लगभग 3 मिलियन लोगों की मौत
हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत युद्ध
कैदी शिविरों और नाजी यातना शिविरों में सन्निपात से अनगिनत कैदियों की मौत हुई
थी। नाज़ी हिरासत में 5.7 मिलियन में से 3.5 मिलियन से अधिक सोवियत युद्ध कैदियों
की मौत हुई थी।
चेचक (स्मॉलपॉक्स)
चेचक, वेरियोला वायरस (चेचक विषाणु) की वजह से होने वाला एक अति संक्रामक रोग
है। 18वीं सदी के समापन वर्षों के दौरान इस रोग से प्रति वर्ष लगभग 400,000 यूरोपीय मारे गए। अनुमान है कि 20वीं
शताब्दी के दौरान 300–500 मिलियन लोगों की मौत के लिए चेचक
जिम्मेदार था। अभी बिल्कुल हाल ही में 1950 के दशक के
आरंभिक दौर में दुनिया में प्रति वर्ष लगभग 50 मिलियन मामले सामने आते रहे। सम्पूर्ण 19वीं और 20वीं सदियों के दौरान सफल टीकाकरण अभियानों के बाद
डब्ल्यूएचओ ने दिसंबर 1979 में चेचक की समाप्ति का प्रमाण दिया। चेचक, अब तक का सम्पूर्ण रूप से समाप्त एकमात्र मानव संक्रामक रोग है।
खसरा (मीज़ल्ज़)
ऐतिहासिक दृष्टि से, बेहद संक्रामक होने की वजह से खसरा पूरी दुनिया में फैला हुआ था।
राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार, 15 वर्ष तक की आयु
के लोगों में 90% लोग खसरे से संक्रमित थे। 1963 में टीके (वैक्सीन) के आगमन से
पहले अमेरिका में प्रति वर्ष इसके लगभग 3 से 4 मिलियन मामले सामने आते थे। गत 150
वर्षों में, खसरे से दुनिया भर में लगभग 200 मिलियन लोगों के
मरने का अनुमान है। केवल 2000 में खसरे से दुनिया भर
में लगभग 777,000 लोग मारे गए। वर्ष 2000 में दुनिया भर में
खसरे के लगभग 40 मिलियन मामले सामने आए थे।
खसरा, किसी समुदाय में लगातार मौजूद रहता है और कई लोगों में प्रतिरोध का विकास
हो जाता है। जिन लोगों को खसरा नहीं हुआ है, उन लोगों में
किसी नए रोग का होना विनाशकारी हो सकता है। 1529 में, क्यूबा में
फैलने वाले खसरे से वहां के मूल निवासियों में दो-तिहाई लोगों की मौत हो गई जो
पिछली बार चेचक के प्रकोप से बच गए थे। इस रोग ने मैक्सिको, मध्य अमेरिका और
इन्का की सभ्यता को तबाह कर दिया था।
तपेदिक
(ट्यूबरक्यूलोसिस)
वर्तमान वैश्विक
जनसंख्या का लगभग एक-तिहाई हिस्सा माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस से संक्रमित हो गया है और प्रति सेकण्ड एक संक्रमण की दर से नए संक्रमण हो
रहे हैं। इन संक्रमणों में से लगभग 5-10% संक्रमण अंत
में सक्रिय रोग का रूप धारण कर लेंगे, जिसका इलाज नहीं करने
पर इसके शिकार लोगों में से आधे से अधिक लोग मर जाते हैं। दुनिया भर में तपेदिक
(क्षयरोग/ट्यूबरक्यूलोसिस/टीबी) से हर साल लगभग 8 मिलियन लोग बीमार होते हैं और 2
मिलियन लोग मारे जाते हैं। 19वीं सदी में, तपेदिक से यूरोप की व्यस्क जनसंख्या में से लगभग एक-चौथाई लोग मारे गए। और 1918 तक फ़्रांस में मरने वाले छः लोगों में से एक की मौत टीबी की वजह
से होती थी। 19वीं सदी के अंतिम दौर तक, यूरोप और उत्तरी
अमेरिका की शहरी जनसंख्या में से 70 से 90 प्रतिशत लोग एम.
ट्यूबरक्यूलोसिस से संक्रमित थे और शहरों में मरने वाले
मजदूर-वर्ग के लगभग 40 प्रतिशत लोगों की मौत टीबी से हुई थी। 20वीं शताब्दी के दौरान, तपेदिक से लगभग 100 मिलियन
लोग मारे गए।] टीबी, अभी भी विकासशील विश्व की सबसे महत्वपूर्ण
स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है।
कुष्ठरोग (लेप्रोसी)
कुष्ठरोग माइकोबैक्टीरियम लेप्रा नामक एक दण्डाणु की
वजह से होने वाला एक रोग है जिसे हैनसेन्स डिज़ीज़ के नाम से भी जाना जाता है। यह
पांच वर्षों की अवधि तक रहने वाला एक दीर्घकालिक रोग है। 1985 के बाद से दुनिया भर
के 15 मिलियन लोगों को कुष्ठ रोग से ठीक किया जा चुका है।] 2002
में, 763,917 नए मामलों का पता लगाया
गया। अनुमान है कि एक से दो मिलियन लोग कुष्ठरोग की वजह से स्थायी रूप से अक्षम हो
गए हैं।
मलेरिया
एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के
कुछ हिस्सों सहित उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मलेरिया का
व्यापक प्रसार है। प्रत्येक वर्ष, मलेरिया के लगभग 350-500
मिलियन मामले देखने को मिलते हैं। औषध प्रतिरोध की वजह
से 21वीं सदी में मलेरिया के इलाज की समस्या बढ़ती जा रही है क्योंकि आर्टमिसिनिन
को छोड़कर शेष सभी मलेरिया-रोधी दवाओं से प्रतिरोध अब आम बात हो गई है।
पीत ज्वर (यलो फीवर)
पीत ज्वर (पीला बुखार), कई विनाशकारी महामारियों का एक स्रोत रहा है। न्यूयॉर्क,
फिलाडेल्फिया और बॉस्टन जैसे सुदूर उत्तरी शहरों पर महामारियों की
मार पड़ी थी। 1793 में, अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी पीत
ज्वर महामारियों में से एक की वजह से फिलाडेल्फिया में अधिक से अधिक 5,000 लोग मारे गए थे जो कुल जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत था। राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन सहित लगभग आधे निवासी शहर छोड़कर चले गए थे।
माना जाता है कि 19वीं सदी के दौरान स्पेन में पीत ज्वर से लगभग 300,000 लोगों की मौत हुई थी।
जैविक युद्ध
चीन-जापान युद्ध
(1937-1945) के दौरान, इम्पीरियल जापानीज़ आर्मी के यूनिट 731
ने हजारों लोगों, ज्यादातर चीनियों, पर
इंसानी प्रयोग किया। सैन्य अभियान में जापानी सेना ने चीनी सैनिकों और नागरिकों पर
जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया। विभिन्न ठिकानों पर प्लेग पिस्सू, संक्रमित वस्त्र और संक्रमित सामग्री युक्त बम गिराए गए। इसके
परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले हैजा, एंथ्रेक्स और प्लेग से
लगभग 400,000 चीनी नागरिकों के मारे जाने का अनुमान था।
Good
ReplyDeleteGood Sir
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