आकाशगंगा (Galaxy) - Tech Science Go

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Friday, June 1, 2018

आकाशगंगा (Galaxy)


आकाशगंगा या मन्दाकिनी हमारी गैलेक्सी को कहते हैं, जिसमें पृथ्वी और हमारा सौरमण्डल स्थित है। आकाशगंगा आकृति में एक चक्राकार गैलेक्सी है, जिसका एक बड़ा केंद्र है और उस से निकलती हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौरमण्डल इसकी भुजा पर स्थित है। आकाशगंगा में 100 अरब से 400 अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 50 अरब ग्रह होंगे, जिनमें से 50 करोड़ अपने तारों से जीवन-योग्य तापमान रखने की दूरी पर हैं। सन् 2011 में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह भी हों सकते हैं। इस अध्ययन के अनुसार आकाशगंगा में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं। हमारा सौरमण्डल आकाशगंगा के बाहरी इलाक़े में स्थित है और आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते हैं।



नामकरण

संस्कृत और कई अन्य हिन्दू भाषाओ में इसे “आकाशगंगा” कहा जाता हैं। पुराणों में आकाशगंगा और पृथ्वी पर स्थित गंगा नदी को एक दुसरे का जोड़ा माना जाता था और दोनों को पवित्र माना जाता था। प्राचीन हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में आकाशगंगा को “दुधियारस्ता” कहा जाता था भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी कई सभ्यताओं को आकाशगंगा दूधिया लगी। "गैलॅक्सी" शब्द का मूल यूनानी भाषा का "गाला" शब्द है, जिसका अर्थ भी दूध होता है। अंग्रेजी में आकाशगंगा को “मिल्की वे” बुलाया जाता है, जिसका अर्थ भी "दूध का मार्ग" होता है।
कुछ पूर्वी एशियाई सभ्यताओं ने "आकाशगंगा" शब्द की तरह आकाशगंगा को एक नदी कहा जाता है। आकाशगंगा को चीनी में "चांदी की नदी" और कोरियाई भाषा में भी "मिरिनाए"  यानि "चांदी की नदी" कहा जाता है।

आकार तथा आकृति

आकाशगंगा एक चक्राकार गैलेक्सी है। इसके चपटे चक्र का व्यास लगभग 1,00,000 (एक लाख) प्रकाश-वर्ष है लेकिन इसकी मोटाई केवल 1,000 (एक हज़ार) प्रकाश-वर्ष है। आकाशगंगा कितनी बड़ी है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर हमारे पूरे सौरमण्डल के चक्र के क्षेत्रफल को एक रुपये के सिक्के जितना समझ लिया जाए तो उसकी तुलना में आकाशगंगा का क्षेत्रफल भारत का डेढ़ गुना होगा।
अंदाज़ा लगाया जाता है कि आकाशगंगा में कम-से-कम 1 खरब (यानि 10,000 करोड़) तारे हैं, लेकिन संभव है कि यह संख्या 4 खरब तक हो सकती है। तुलना के लिए हमारी पड़ोसी गैलेक्सी एण्ड्रोमेडा में 10 खरब तारे हो सकते हैं। एण्ड्रोमेडा का आकार भी चक्राकार है। आकाशगंगा के चक्र की कोई ऐसी सीमा नहीं है जिसके बाद तारे न हों,  बल्कि सीमा के पास तारों का घनत्व धीरे-धीरे कम होता जाता है। देखा गया है कि केंद्र से 40,000 प्रकाश वर्षों की दूरी के बाद तारों का घनत्व तेज़ी से कम होने लगता है। वैज्ञानिक इसका कारण अभी ठीक से समझ नहीं पाए हैं। मानव आकाशगंगा के चक्र के भीतर स्थित हैं, इसलिए हम इसकी सही आकृति का अनुमान नहीं लगा पाए हैं। हम पूरे आकाशगंगा के चक्र और उसकी भुजाओं को देख नहीं सकते। हमें हज़ारों अन्य गैलेक्सियों का पूरा दृश्य आकाश में मिलता है जिससे हमें गैलेक्सियों की भिन्न श्रेणियों का पता है। आकाशगंगा का अध्ययन करने के बाद हम केवल अनुमान लगा सकते हैं कि यह चक्राकार श्रेणी की गैलेक्सी है। लेकिन यह पता लगाना बहुत कठिन है कि आकाशगंगा की कितनी मुख्य और कितनी क्षुद्र भुजाएँ हैं। ऊपर से यह भी देखा गया है कि अन्य चक्राकार गैलेक्सियों में भुजाएँ कभी-कभी अजीब दिशाओं में मुड़ी हुई होती हैं या फिर विभाजित होकर उपभुजाएँ बनती हैं। इन परेशानियों की वजह से वैज्ञानिकों में भुजाओं के आकार को लेकर मतभेद है। 2008 तक माना जाता था कि आकाशगंगा की चार मुख्य भुजाएँ हैं और कम-से-कम दो छोटी भुजाएँ हैं जिनमें से एक हन्स भुजा है जिस पर हमारा सौरमंडल स्थित है।

बनावट

1990 के दशक तक वैज्ञानिक समझा करते थे कि आकाशगंगा का घना केन्द्रीय भाग एक गोले के अकार का है, लेकिन फिर उन्हें शक़ होने लगा कि उसका आकार एक मोटे डंडे की तरह है। बाद में सन  2005 में स्पिट्ज़र अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी तस्वीरों से स्पष्ट हो गया कि उनकी आशंका सही थी: आकाशगंगा का केंद्र वास्तव में गोले से अधिक खिंचा हुआ एक डंडेनुमा आकार वाला है।

आयु (उम्र)

2007 में आकाशगंगा में एक "एच॰ई॰ 1523-150901" नाम के तारे की आयु 13.2 अरब साल अनुमानित की गयी,  इसलिए आकाशगंगा कम-से-कम उतना पुराना तो है ही।

मन्दाकिनी

मन्दाकिनी या गैलेक्सी, असंख्य तारों का समूह है जो साफ और अँधेरी रात में, आकाश के बीच से जाते हुए अर्धचक्र के रूप में और झिलमिलाती हुई मेखला के समान दिखाई पड़ता है। यह मेखला वस्तुत: एक पूर्ण चक्र का अंग हैं जिसका क्षितिज के नीचे का भाग नहीं दिखाई पड़ता। भारत में इसे मंदाकिनी, स्वर्णगंगा, सुरनदी, आकाशनदी, देवनदी, नागवीथी, हरिताली आदि भी कहते हैं।
हमारी पृथ्वी और सूर्य जिस गैलेक्सी में उपस्थित हैं, रात्रि में हम नंगी आँख से उसी गैलेक्सी के ताराओं को देख पाते हैं। अब तक ब्रह्मांड के जितने भी भाग का पता चला है उसमें लगभग ऐसी ही 19 अरब गैलेक्सियां होने का अनुमान है। ब्रह्मांड के विस्फोट सिद्धांत (बिग-बैग थ्योरी ऑफ युनिवर्स) के अनुसार सभी गैलेक्सियां एक दूसरे से बड़ी तेजी से दूर हटती जा रही हैं।
ब्रह्माण्ड में लगभग सौ अरब गैलेक्सी अस्तित्व में है। जो बड़ी मात्रा में तारे, गैस और खगोलीय धूल को समेटे हुए है। गैलेक्सियों ने अपना जीवन लाखो वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया और धीरे धीरे अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया। प्रत्येक गैलेक्सियाँ अरबों तारों को समेटे हुए है। गुरुत्वाकर्षण तारों को एक साथ बाँध कर रखता है और इसी तरह अनेक गैलेक्सी एक साथ मिलकर तारा गुच्छ (समूह) में रहती है।
प्रारंभ में खगोलशास्त्रियों की धारणा थी कि ब्रह्मांड में नई गैलेक्सियों का जन्म संभवत: पुरानी गैलेक्सियों के विस्फोट के फलस्वरूप होता है। लेकिन यार्क विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्रियों-डॉ॰सी.आर. प्यूटर्न और डॉ॰ए.ई राइट ने गैलेक्सियों के चार समूहों की अंतरक्रियाओं का अध्ययन करके इस धारणा का खंडन किया है। उन्होंने यह बताया कि गैलेक्सियों के बीच में ऐसी विस्फोटक अंतर क्रियाएँ नहीं होती हैं जो नई गैलेक्सियों को जन्म दे सकें।

गैलेक्सी के प्रकार
अधिकाँश गैलेक्सियों का केंद्र तारों से भरा हुआ गोलाकार भाग होता है, जिसे नाभिक कहा जाता है और यह नाभिक अपने चारों ओर एक तलीय गोलाकार डिस्क से जुडा होता है। खगोलविज्ञानी गैलेक्सियों को उनके आकार के आधार पर मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित करतें है। यह कोई नहीं जानता कि क्यों गैलेक्सियाँ एक निश्चित रूप धारण करती है। शायद यह गैलेक्सियों के घूर्णन के वेग और उसमे स्थित तारों के बनने कि गति पर निर्भर करता है।

हमारी गैलेक्सी

हमारी गैलेक्सी (जिसमें हमारी पृथ्वी है) की चौड़ाई और चमक सभी जगह समान नहीं है। धनु तारामंडल में यह सबसे अधिक चौड़ी और चमकीली है। दूरदर्शी से देखने पर गैलेक्सी में असंख्य तारे दिखाई पड़ते हैं। विभिन्न चमक के तारों की संख्या गिनकर तथा उनकी दूरी की गणना कर और उनकी गति नापकर ज्योतिषियों ने गैलेक्सी के वास्तविक रूप का बहुत अच्छा अनुमान लगा लिया है। इस प्रकार गैलेक्सी के रूप पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि गैलेक्सी लगभग समतल वृत्ताकार पहिए के समान है जिसकी धुरी के पास का भाग कुछ फूला हुआ है। इस पहिए का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है (1 प्रकाशवर्ष=5.9’0101 मील या पृथ्वी से सूर्य की दूरी का 63 हजार गुना) और मोटाई 3000 से 6000 प्रकाशवर्ष के बीच है। केंद्र के पास की मोटाई लगभग 15,000 प्रकाशवर्ष है। हमारी गैलेक्सी में तारे समान रूप से वितरित नहीं हैं। बीच बीच में अनेक तारो के समूह हैं तारों के बीच में सूक्ष्म धूल और गैस फैली हैं, जो दूर के तारों का प्रकाश क्षीण (कम) कर देती हैं। धूल और गैस का घनत्व हमारी गैलेक्सी के मध्यतल में अधिक है। कहीं कहीं धूल के घने बादल हो जाने से काली नीहारिकाएँ बन गई हैं। कहीं गैस के बादल पास के तारों के प्रकाश से उद्दीप्त होकर चमकती नीहारिका के रूप में दिखाई पड़ते हैं। हमारी गैलेक्सी का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लगभग एक खरब गुना है। इसमें से प्राय: आधा तो तारों का द्रव्यमान है और आधा धूल और गैस का।

गैलेक्सी का वातावरण

हमारी गैलेक्सी बीच में फूली हुई वृत्ताकार है। इसमें एक ही वृत्त के भीतर वे सभी तारे हैं जो हमें आकाश में अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं। हमारी गैलेक्सी के चारों ओर बहुत दूर तक तारे और तारागुच्छ (तारों का समूह) विरलता से फैले हुए हैं।
हमारी गैलेक्सी के केंद्र के पास तारे संख्या में अधिक घने हैं और किनारे की ओर अपेक्षाकृत बिखरे हुए हैं। सभी तारे केंद्र की परिक्रमा कर रहे हैं, जो तारे केंद्र के निकट है वे अधिक गति से और जो तारे दूर हैं वे कम गति से केंद्र की परिक्रमा करते हैं। हमारा सूर्य केंद्र से लगभग 30-35 हजार प्रकाशवर्ष दूर है और गैलेक्सी के मध्य तल में हैं। पृथ्वी से गैलेक्सी का केंद्र धनु तारामंडल की ओर है। इसीलिए सूर्य गैलेक्सी के केंद्र की परिक्रमा करता है। इस परिक्रमा में उसका वेग 150 मील प्रति सेंकड हैं। इस वेग से भी पूरी परिक्रमा में सूर्य को 20 करोड़ वर्ष लग जाते हैं।

चक्राकार गैलेक्सी

पिनव्हील गैलेक्सी एक चक्राकार गैलेक्सी है
चक्राकार गैलेक्सी किसी सर्पिल आकार वाली गैलेक्सी को कहते हैं, जैसे की हमारी अपनी गैलेक्सी, आकाशगंगा है। इनमें एक घूर्णन करता भुजाओं वाला चक्र होता है जिसमें तारे, गैस और धूल होती है और जिसके बीच में एक मोटा उभरा हुआ तारों से घना गोला होता है। इसके इर्द-गिर्द एक कम घना गैलेक्सीय सेहरा होता है जिसमें तारे अक्सर गोल तारागुच्छों (समूहों) में पाए जाते हैं। सर्पिल गैलेक्सियों में भुजाओं में नवजात तारे और केंद्र में पुराने तारों की अधिकता होती है। क्योंकि नए तारे अधिक गरम होते हैं इसलिए भुजाएं केंद्र से ज़्यादा चमकती हैं।

स्थानीय समूह

सॅक्सटॅन्स गैलेक्सी हमसे 43 लाख प्रकाश-वर्ष दूर स्थित एक बेढंगी गैलेक्सी है जो हमारे स्थानीय समूह की सदस्य है जिसमें हमारी गैलेक्सी, आकाशगंगा, भी शामिल है। इस समूह में 30 से ज़्यादा गैलेक्सियाँ शामिल हैं जिनमें से बहुत सी बौनी (छोटी) गैलेक्सियाँ हैं। स्थानीय समूह का द्रव्यमान केंद्र आकाशगंगा और एण्ड्रोमेडा गैलेक्सी के बीच में कही स्थित है और यह दोनों ही समूह की सब से बड़ी गैलेक्सियाँ हैं। कुल मिलाकर स्थानीय समूह का व्यास एक करोड़ प्रकाश-वर्ष तक फैला हुआ है। इसमें तीन चक्राकार गैलेक्सियाँ हैं - क्षीरमार्ग, एण्ड्रोमेडा और ट्राऐन्गुलम गैलेक्सी।

एण्ड्रोमेडा (देवयानी) आकाशगंगा

एंड्रोमेडा तारामंडल निहारिका के समान तारामंडल है जो पृथ्वी से 2,500,000 प्रकाश वर्ष दूर एंड्रोमेडा नक्षत्र-मंड़ल में स्थित है। एंड्रोमेडा हमारी सबसे निकटतम आकाशगंगा है लेकिन कुल मिलाकर यह सबसे निकटतम तारामंडल नहीं है। इसे अमावस की रात को धब्बे के रूप में देखा जा सकता है, इसे नग्न आंखों से दूर तक के पिंडों को देखा जा सकता है और दूरबीन से शहरी क्षेत्रों में भी देखा जा सकता है। इसका नाम पौराणिक राजकुमारी एंड्रोमेडा के नाम पर रखा गया है। एंड्रोमेडा स्थानीय समूह का सबसे बड़ा तारापुंज है जिसमें एंड्रोमेंडा तारापुंज, आकाशगंगा तारापुंज, ट्रियांगुलम तारापुंज और 30 अन्य छोटे तारापुंज शामिल हैं।
सन 2005 में, खगोलविदों ने केक टेलीस्कोप का उपयोग यह दिखाने के लिए किया कि तारों का टिमटिमाना आकाशगंगा के बाहर की ओर बढता जाता है जो वास्तव में मुख्य डिस्क का ही एक हिस्सा है। इसका मतलब है कि एंड्रोमेडा में तारों की चक्राकार डिस्क पिछले अनुमान की तुलना में तीन गुना अधिक बड़ी है। जो आकाशगंगा के व्यास को 220,000 प्रकाश वर्ष से अधिक बढ़ाती है। इससे पहले, एंड्रोमेडा के आकार का अनुमान लगभग 70,000 से 120,000 प्रकाश वर्ष के आसापास था।
एंड्रोमेडा आकाशगंगा से लगभग 460 गोलाकार पुंज संबंधित है। इन पुंज में सबसे अधिक विशालकाय पुंज ग्लोबुलर है, यह आकाशगंगा में किसी अन्य सामान्य समूह गोलाकार पुंज से अधिक चमकदार पुंज है। इसमें कई मिलियन तारे हैं यह आकाशगंगा में सबसे चमकीले गोलाकार पुंज के रूप में जाना जाता है। ग्लोबुलर की संरचना बहुत अधिक सघन है। जिसके परिणामस्वरूप, कुछ लोग G1 (ग्लोबुलर) को छोटी आकाशगंगा का छोटा भाग मानते हैं ग्लोबुलर की सबसे अधिक स्पष्ट चमक G76 के समान है जो उसके  दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित है।

उपग्रह

हमारी आकाशगंगा के समान, एंड्रोमेडा आकाशगंगा में भी उपग्रह आकाशगंगा हैं जिनकी संख्या 14 छोटी आकाशगंगा है। सबसे अच्छी जानकारी वाली और सबसे अधिक देखी जाने वाली उपग्रह आकाशगंगा M32 और M110 हैं। वर्तमान साक्ष्य के आधार पर, ऐसा लगता है कि M32 का M31  के साथ बड़ा ही नज़दीकी सामना हुआ। M32 कभी बहुत बड़ी आकाशगंगा रही होगी जिसके बाद M31 ने इसके तारकीय बिंब को हटा दिया और इसके अंतर्भाग में तारे के निर्माण में बड़ी तेजी के साथ वृद्धि हुई जिसकी समाप्ति उसके बाद हो गई।
एंड्रोमेडा आकाशगंगा, हमारी आकाशगंगा की तरफ 100 से 140 किलोमीटर/सेकेण्ड की तेजी से बढ़ रही हैं, इसलिए यह स्थानांतरित होने वाली नीली आकाशगंगा में से एक है। एंड्रोमेडा आकाशगंगा और हमारी आकाशगंगा 450 करोड़ वर्षों के बाद आपस में टकराने की उम्मीद है, हालांकि इसका विवरण अनिश्चित है इस टक्कर के परिणामस्वरूप ये आकाशगंगा एक विशालकाय अंडाकार आकाशगंगा के रूप में परिवर्तित हो जाएंगी  आकाशगंगा के समूह में आकाशगंगाओं के बीच इस तरह की घटनाएं आम बात है। पृथ्वी और सौर मंडल के बीच टक्कर की अभी तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। यदि आकाशगंगा आपस में विलीन नहीं होती हैं, तो हो सकता है कि सौर मंडल आकाशगंगा से बाहर रखा जा सके या एंड्रोमेडा से जुड़ सके।

ट्राऐन्गुलम गैलेक्सी

ट्राऐन्गुलम गैलेक्सी पृथ्वी से 30 लाख प्रकाश-वर्ष दूर स्थित एक चक्राकार गैलेक्सी है जो हमारे स्थानीय समूह की तीसरी सब से बड़ी सदस्या है इसका अनुमानित व्यास (डायामीटर) 50,000 प्रकाश-वर्ष है और इसमें लगभग 40 अरब तारें हैं। तुलना के लिए हमारी आकाशगंगा में 4 खरब और एण्ड्रोमेडा में 10 खरब तारे हैं।

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