यह हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य के
चक्कर लगाती रहती है। इसी प्रकार चंद्रमा
भी पृथ्वी के चक्कर लगाता है। चंद्रमा जब भी पृथ्वी के निकट आता है तो पृथ्वी को
अपने गुरुत्वकर्षण बल से अपनी ओर खीचता है लेकिन इस खिचाव का ठोस जमीन पर कोई
प्रभाव नहीं पड़ता परन्तु समुंद्री जल में हलचल पैदा कर देता है। महान् गणितज्ञ
सर आइजैक न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गुरुत्वाकर्षण के नियम- “किसी वस्तु का
गुरुत्वाकर्षण उसकी मात्रा का समानुपाती तथा उसकी दूरी के वर्ग का प्रतिलोमानुपाती
होता है।“ ज्वार की उत्पत्ति में इस नियम का पूर्ण रूप से पालन होता है।
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ज्वार-भाटा ( Tide) |
धरती पर स्थित सागरो/महासागरों के जल-स्तर का सामान्य-स्तर से ऊपर
उठना ज्वार तथा नीचे गिरना भाटा कहलाता है। ज्वार-भाटा की घटना केवल
सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होतीं हैं जिन पर समय एवं
स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्व बल लगता है। चन्द्रमा एवं सूर्य की आकर्षण
शक्तियों के कारण सागरीये जल के ऊपर उठने तथा गिरने को ज्वारभाटा कहते हैं। सागरीये जल के ऊपर
उठकर आगे बढ़ाने को ज्वार (Tide) तथा सागरीये जल को नीचे गिरकर पीछे लौटने (सागर की ओर) भाटा (Ebb) कहते हैं।
पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं।
ज्वारभाटा की उत्पत्ति
पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति होती हैं। चन्द्रमा का ज्वार-को उत्पन्न करने वाला बल
सूर्य की अपेक्षा दोगुना होता है क्योंकि यह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अधिक पास है। अमावस्या और
पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा, सूर्य एवं पृथ्वी एक सीध में होते
हैं जिससे उच्च ज्वार उत्पन्न होता है। जबकि सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चन्द्रमा मिलकर पृथ्वी
के केंद्र से समकोण बनाते हैं, इस स्थिति में सूर्य और
चन्द्रमा के आकर्षण बल एक-दुसरे को संतुलित करने के
प्रयास में प्रभावहीन हो जाते हैं तो निम्न ज्वार उत्पन्न होता है।
पृथ्वी पर प्रत्येक स्थान पर प्रतिदिन 12 घंटे 26 मिनट के बाद ज्वार तथा ज्वार के 6 घंटा 13 मिनट बाद भाटा आता है। ज्वार प्रतिदिन दो बार आता है- एक बार चन्द्रमा के आकर्षण बल से और दूसरी बार स्वयं पृथ्वी के अपकेन्द्रीय बल के कारण।
नदियों, झीलों, तालाबों और अन्य छोटे जल क्षेत्रो में ज्वारभाटा क्यों नहीं होते हैं?
ज्वार-भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी
चीजों पर लागू होतीं हैं जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्वाकर्षण
बल लगता है। इसका अनुभव नदियों, झीलों, तालाबों और अन्य छोटे
जल क्षेत्रो में नहीं होता है क्योकि बड़े जल क्षेत्र में इसका प्रभाव बहुत बड़ा
होता है। इसलिए महासागर और समुद्र में ज्वारभाटा का अनुभव आसानी से हो जाता है। जबकि
नदियों,
झीलों, तालाबों और अन्य छोटे जल क्षेत्रो में पानी की सीमित मात्रा के कारण इसमे हमें ज्वार-भाटा का अनुभव नहीं
हो पाता है।
मानव जीवन के लिए ज्वारभाटा के फायदे
प्रत्येक प्राकृतिक घटना मानव जीवन तथा अन्य प्राणियों के लिए उचित
या अनुचित दोनों प्रकार के प्रभाव डालती है। इसी प्रकार ज्वार-भाटा भी मानव जीवन और
अन्य प्राणियों पर प्रभाव डालते हैं
ज्वार-भाटा के कुछ उचित प्रभाव निम्न हैं -
1. मत्स्य पालन (Fishing): ज्वार समुद्री जीवन जैसे समुद्री पौधों और मछलियों की प्रजनन गतिविधियों
को भी प्रभावित करता है। ज्वार के कारण मछली पकड़ना और उनका पालन करना आसान हो गया है
क्योकि ज्वार अपने साथ बहुत-सी मछलियों को किनारे ले आता है।
2. ज्वारपूर्ण खाद्य क्षेत्र (Tidal Zone
Foods): ज्वारभाटा की नियमिता के कारण ज्वारीय क्षेत्र
के समुद्री जीव जैसे केकड़े, घोंघे, समुद्री
शैवाल आदि की संख्या संतुलित रहती है अगर ज्वारभाटा नियमित ना हो तो इनकी संख्या
कम हो जाएगी या ये विलुप्त हो सकते हैं।
3. नौ-परिवहण (Navigation): उच्च ज्वार समुद्री यात्राओं में मदद करते हैं। ये समुंद्री किनारों में
पानी का स्तर बढ़ा देते हैं जिसकी वजह से जहाज को बंदरगाह तक पहुंचाने में मदद
मिलती है।
4. मौसम (Weather): ज्वारभाटा के नियमिता के कारण समुंद्री जलवायु समुंद्री जल जीवन को रहने
योग्य बनती है और पृथ्वी के तापमान को भी संतुलित करती है।
5. ज्वार ऊर्जा (Tidal Energy): ज्वारभाटा प्रतिदिन दो बार आता है जिसके कारण पानी में बहुत तेजी आती है।
अगर हम इस ऊर्जा को संचित कर ले तो यह अक्षय ऊर्जा का एक और स्रोत हो सकता है।
जिसके कारण तट के किनारे रहने वाले समुदायों को यह अक्षय ऊर्जा प्रदान किया जा
सकता है।
ज्वार-भाटा के प्रकार
ज्वार-भाटा मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं -
·
उच्च ज्वार
- जब
सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा एक सीध में होते हैं।
·
निम्न ज्वार
- जब
सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा समकोणिक अवस्था में होते हैं।
ज्वारीय शक्ति
ज्वारीय शक्ति या
ज्वारीय ऊर्जा को जल विद्युत का एक रूप कहा जा सकता है है क्योकि ज्वार से प्राप्त
ऊर्जा को उपयुक्त टर्बाइन लगाकर विद्युत शक्ति में बदल दिया जाता है। इसमें दोनो अवस्थाओं में विद्युत शक्ति पैदा होती
है - जब पानी ऊपर चढ़ता है तब भी और जब पानी उतरने लगता है तब भी। इसे ही ज्वारीय शक्ति (tidal power) कहते हैं। यह एक अक्षय ऊर्जा का स्रोत है।
ज्वारीय शक्ति का अभी बहुत
कम उपयोग शुरू हो पाया है किन्तु इसमें भविष्य के लिये अपार ऊर्जा प्रदान करने की
क्षमता उपलब्ध है। ज्वार-भाटा के आने और जाने का समय पहले से ही ज्ञात होता है
जबकि इसके विपरीत पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा का पहले
से अनुमान लगाना कठिन कार्य है।
ज्वार के उठने और गिरने से शक्ति उत्पन्न होने के विचार पर अनेक वैज्ञानिकों का
ध्यान आकर्षित हुआ है और इस शक्ति को काम में लाने की अनेक योजनाएँ समय समय पर बनाई
गयी हैं। पर जो योजना आज सफल समझी जाती है, वह ज्वार बेसिनों
का निर्माण है। ये बेसिन बाँध बनाकर या बराज बनाकर समुद्र तटों के आसपास बनाए जाते
हैं। ज्वार आने पर इन बेसिनों में पानी भर लिया जाता है, फिर
इन बेसिनों से पानी निकालकर जल टरबाइन चलाए जाते हैं और शक्ति उत्पन्न की जाती है।
सबसे पहले बाँध बनाकर इसे समुद्र से पृथक् करते हैं। फिर बने हुए बेसिन और समुद्र के
बीच टरबाइन स्थापित करते हैं। ज्वार उठने पर बेसिन को पानी से भर लिया जाता है और
जब ज्वार भाटा का रूप लेने लगता है तब टरबाइन के जलद्वारो को खोलकर और टरबाइन को चला
कर शक्ति उत्पन्न करते हैं।
ज्वार-नदीमुख
ज्वार-नदीमुख सागर तट पर स्थित एक आधा-बंद खारे जल का समूह होता है जिसमें एक या एक से अधिक नदियाँ और झरने आपस मे मिलते हैं, समय-समय पर ज्वार-भाटा आकर इससे पानी व पानी
में उपस्थित अन्य मलबा समुद्र में खींच लेते हैं। इस
कारण से ज्वार-नदीमुखों में साधारण नदीमुख (डेल्टा) की तरह मलबा एकत्रित नहीं होता, जो नदी के तल
पर जमा होने से उन्हें कई घाराओं में बिखरने को मजबूर कर देता है, जिससे कि उन धाराओं के बिखराव का आसानी से पहचाना जाने वाला त्रिकोण
(डेल्टा) बन जाता है। ज्वार-नदीमुख समुद्री और नदीय वातावरणों का मिश्रण होता है
इसलिए इनमें ऐसे कई प्राणी व वनस्पति पनपते (जन्म लेते) हैं जो और कहीं नहीं
मिलते।
कुछ उदाहरण
·
नर्मदा
नदी का
ज्वार-नदीमुख
·
ताप्ती
नदी का
ज्वार-नदीमुख
·
ओडर नदी का
ज्वार-नदीमुख
·
सीन नदी का
ज्वार-नदीमुख
·
साइन
नदी का
ज्वार-नदीमुख
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