ऊर्जा के अन्य स्रोतों से विद्युत शक्ति का निर्माण विद्युत उत्पादन कहलाता है विद्युत्शक्ति का उत्पादन, विद्युत् जनित्रों (generators) द्वारा किया जाता है। तार की एक कुण्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाकर विद्युत उत्पन्न की जाती है कुण्डली जितनी तेज घूमेगी उतना ही ज्यादा विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।
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विद्युत उत्पादन (Power Generation) |
विद्युत का उत्पादन जहाँ किया जाता है उसे बिजलीघर कहते हैं। बिजलीघरों में विद्युत-यांत्रिक जनित्रों के द्वारा बिजली पैदा की जाती है विद्युत शक्ति, जल से, कोयले आदि की उष्मा से, नाभिकीय अभिक्रियाओं से, पवन शक्ति से एवं अन्य कई विधियों से पैदा की जाती है।
परिचय
विद्युत् शक्ति के लिए, तीन संघटक आवश्यक हैं :
(1) चालक, जो
संवाहक समूह होता है,
(2) चुंबकीय क्षेत्र, एक कुंडली में विद्युत् धारा प्रवाहित करके प्राप्त किया जाता है और
(3) चालक समूह को चुंबकीय
क्षेत्र में घुमाने की व्यवस्था, जिसका अर्थ है यांत्रिक
ऊर्जा का प्रबंध।
यही यांत्रिक ऊर्जा, विद्युत् ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होती
है और ऊर्जा अविनाशिता नियम का प्रतिपादन करती है।
किसी भी विद्युत् जनित्र के तीन मुख्य अंग होते हैं :
1. चालकों को धारण करने वाले
आर्मेचर (armature), जो नरम लोहे के पत्तियों का बना होता है,
परिधि के चारों ओर खाँचे बने होते हैं, जिनमें
कुंडलियाँ रखी जाती हैं। चालकों को एक निश्चित दशा में रखा जाता है, जिसे आर्मेचर कुंडलन (Armature winding) कहते हैं।
2. क्षेत्र कुंडली - इसमें धारा
के प्रवाहित होने पर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
3. यांत्रिक शक्ति का उत्पादक -
यह मुख्य चालक होता है। यह जल का टरबाइन, भाप का टरबाइन,
भाप का इंजन, अथवा डीजल इंजन में से कोई भी हो
सकता है।
विद्युतजनित्र
विद्युत् जनित्र,
मुख्यत:, दो प्रकार के होते हैं :
दिष्ट धारा जनित्र (D.C. generator) और
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (A.C. generator)। किन्तु दोनों के
मूल सिद्धांत एक ही होते हैं, परंतु बनावट के दृष्टिकोण से
उनमें काफी अंतर होता है। दिष्ट धारा जनित्र में चुंबकीय क्षेत्र कुंडलियों द्वारा
उत्पन्न किया जाता है और आर्मेचर पर आरोपित चालक घूर्णन करता है। इस प्रकार,
विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है और प्रत्यावर्ती धरा जनित्रों में,
चालक समूह अचल होता है जो स्टैटर (Stator) कहलाता
हैं। चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करनेवाले ध्रुव और कुंडली घूमने वाले भाग होते हैं
और उन्हें रोटर (Rotor) कहते हैं। आर्मेचर को अचल रखने का
मुख्य लाभ यह है कि इससे उच्चतर वोल्टता प्राप्त की जा सकती है। उच्च वोल्टता पाने
के लिए या तो चालक की संख्या बढ़ानी पड़ती है, अथवा
घूर्णनवेग, या दोनों ही। चालक की संख्या बढ़ाने से आर्मेचर
का आकार बहुत बढ़ जाता है और उसके घूर्णी भाग होने के कारण अपकेंद्री बल इतना बढ़
जाएगा कि संरचना के दृष्टिकोण से चालकों को अपने स्थानों पर स्थिर रखना भी एक
समस्या हो जाएगी। बड़े आकार के घूर्णी भाग बनावट के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं
होते और न उनका वेग ही बहुत अधिक बढ़ाया जा सकता है। अत:, घूर्णी
आर्मेचर वाले जनित्रों में उच्च वोल्टता नहीं प्राप्त की जा सकती है।
आर्मेचर
चालकों में चुंबकीय क्षेत्र के सापेक्ष, आपेक्षिक गति के कारण उत्पन्न होने वाली वोल्टता,
प्रत्यावर्ती रूप की होती है। दिष्ट धारा जनित्र के आर्मेचर में भी इसी प्रकार की
वोल्टता पायी जाती है, पर एक दिक्परिवर्तक (commutator)
द्वारा उसे बाहरी परिपथ में अदिष्ट धारा के रूप में प्राप्त किया
जाता है। दिक् परिवर्तक आर्मेचर के साथ उसी साफ्ट (shaft), पर
लगा होता है धारा के दिक्परिवर्तक से बाहरी परिपथ में ले जाने के लिए ब्रूशेस (brushes)
का प्रबंध होता है, जो कार्बन के होते हैं और ब्रुश
धारक (brush holder) में लगे होते हैं।
विद्युत उत्पादन की विधियाँ
जहाँ तक यांत्रिक शक्ति का सवाल है, वह चाहे तो किसी टरबाइन से अथवा इंजन से
प्राप्त की जा सकती है, या नदी के बहते हुए पानी से, जिसमें असीमित शक्ति का भंडार उपस्थित है। कोशिश तो यह की जा रही है कि
समुद्र के ज्वार भाटे में निहित ऊर्जा को तथा ज्वालामुखी पर्वतों में छिपी हुई असीमित
शक्ति के भंडारों को भी काम में लाया जाए। परमाणुवीय शक्ति का उपयोग तो विद्युत्
उत्पादन के लिए बहुत तेजी से बढ़ रहा है और बहुत से बड़े बड़े परमाणुवीय बिजलीघर
बनाए गए हैं, परंतु अभी तक, मुख्यत:,
तीन प्रकार के बिजली घर ही सामान्य हैं : पन, भाप एवं डीज़ल इंजन चालित।
पनबिजलीघर ऐसे स्थानों में बनाए जाते हैं जहाँ
किसी नदी में आसानी बाँध बाँधकर पर्याप्त जल एकत्रित किया जा सके और उसे
आवश्यकतानुसार ऊँचाई से नलों के द्वारा गिराकर जल टरबाइन चलाए जा सकें। ये टरबाइन, विद्युत जनित्रों के मुख्य चालक होते हैं।
पर्वतो से बहने वाली नदियों में असीम जलशक्ति निहित होती है। ऐसे बिजलीघर बनाने के
लिए पहले सारे क्षेत्र का सर्वेक्षण किया जाता है और सबसे उपयुक्त ऐसा स्थान खोजा
जाता है जहाँ कम से कम परिश्रम और लागत से यथासंभव बड़ा बाँध बनाया जा सके। ऐसे
बिजलीघरों की लागत बहुत अधिक होती है, पर उनका प्रचालन तथा
व्यय (operating cost) बहुत कम होता है। ऐसे बिजलीघरों की
स्थापना, मुख्यत:, उपयुक्त स्थान पर
निर्भर करती है। यह हो सकता है कि ये बिजलीघर उद्योग स्थल से बहुत दूर हों। ऐसी
दशा में बहुत लंबी संचरण लाइनें भी बनानी पड़ सकती हैं। अतएव ऐसे बिजलीघरों के
निर्माण से पहले संचरण दूरी तथा उसकी व्यवस्था का विचार करना भी आवश्यक है।
भाप चालित बिजलीघरों में भाप से चलने वाले टरबाइन होते हैं।
भाप टरबाइन, उच्च वेग पर चालन करते हैं अधिकांश टरबाइनों में
उच्च दबाव पर भाप डाली जाती है, जिसके लिए उच्च दबाव के
वाष्पित्र (boilers) की आवश्यकता होती है। 600 पाउंड प्रति वर्ग इंच का दबाव अब सामान्य हो गया है और आधुनिक टरबाइन तो
इससे भी अधिक दबाव पर प्रचालन करने के लिए बनाए जा रहे हैं। टरबाइन भी अब इस
क्षेत्र में सफलतापूर्वक प्रयुक्त होने लगे हैं। टरबाइन की रचना में नए शोध हो रहे
हैं जिससे भाप चालित बिजलीघरों के कार्य करने की क्षमता को और भी अधिक बढ़ाया जा
सके।
आजकल परमाणुवीय बिजलीघरों की स्थापना में अधिक
ध्यान दिया जा रहा है। परमाणुवीय बिजलीघर बहुत से देशों में बनाए गए हैं और उनकी
बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाई जा रही हैं। ब्रिटेन, अमरीका तथा रूस
में पिछले 10 वर्षों में बहुत बड़े बड़े परमाणुवीय बिजलीघर
बनाए गए हैं और बहुत से बनाए जा रहे हैं। इनका मुख्य लाभ यह है कि ये भार केंद्रो
के पास बनाए जा सकते हैं, जिससे लंबी संचरण लाइनों की
आवश्यकता नहीं रहती। इसके अतिरिक्त, ईंधन की मात्रा अत्यंत
कम होने के कारण, परिवहन तथा व्यय की समस्या भी उत्पन्न नहीं
होती है। इनकी प्रचालन प्रणाली अभी तक शोध का विषय है। प्रणालियों में रोज नए
अनुसंधान के कारण इनकी स्थापना विवादित है।
शक्ति के दूसरे स्रोत निरंतर समाप्त होते जा
रहे हैं, अनुमान के अनुसार यदि संसार
में कोयले की खपत इसी प्रकार होती रही, तो वर्तमान कोयले की
खानें संसार को अधिकतम 200 वर्ष तक कोयला देती रह सकती हैं।
इसी प्रकार तेल की उत्पत्ति के विषय में भी कहा जा सकता है। जल विद्युत् समाप्त
होने वाला नहीं है, परंतु ये भंडार उपयोग स्थलों से बहुत दूर
हैं। जैसे ब्रह्मपुत्र नदी के जल में, भारत की सीमा में
प्रवेश करने के स्थल पर, लगभग 35 लाख
किवा. शक्ति की क्षमता है। परंतु वहाँ बिजलीघर की स्थापना करना इतना सुगम नहीं और यह
स्थान उपयोग स्थलों से लगभग 500 मील दूर है। इसी कारण परमाणुवीय
बिजलीघरों की स्थापना में अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
छोटे नगरों, अथवा छोटे उद्योगों के विद्युत उपयोग के लिए डीज़ल इंजनों का भी उपयोग किया जाता है। ये
अधिकतर कम क्षमता के होते हैं। ये पनबिजलीघरों एवं तापीय बिजलीघरों (कोयले का
प्रयोग करनेवाले) की तरह बड़े आकारों में नहीं बनाए जा सकते तथा इनसे बनने वाली
विद्युत् शक्ति का प्रति यूनिट मूल्य भी कहीं अधिक होता है, परंतु
छोटे कार्यो के लिए वे बहुत ही उपयोगी होते हैं। इन्हें आसानी से चलाया जा सकता है
और कुछ ही मिनटों में भार लेने के अनुकूल हो जाते हैं। इस कारण ये अतिरिक्त (standby) संचायक के रूप में बहुत
उपयोगी होते हैं। डीज़ल इंजन का स्थान आजकल गैस
टरबाइन ले रहा है। गैस टरबाइन की कार्य क्षमता डीज़ल
इंजनों की तुलना में कहीं अधिक होती है और ये बड़े
आकारों में भी निर्मित किए जा सकते हैं, परंतु ये बहुत अधिक
ताप एवं दबाव पर चलते हैं। अधिक कार्य क्षमता के लिए और भी ऊँचे ताप का होना बहुत आवश्यक
है।
प्रकृति में विद्युत शक्ति के उत्पादन के लिए असीमित
साधन उपस्थित हैं। इनमें से कुछ निम्न हैं :-
भूतापीय उर्जा: ज्वालामुखी पर्वतों के अंदर भयंकर ताप है। यदि इस
ताप का उपयोग बिजलीघरो में जल के वाष्पन में किया जाए तो भाप टरबाइनों के द्वारा असीमित
विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इटली एवं जापान में भी ऐसे बिजलीघरों की
योजना बनाई जा रही है और इस प्रकार अभी तक जो ज्वालामुखी अपनी भयंकरता के लिए ही
प्रसिद्ध थे, अब उपयोगिता के क्षेत्र में भी अपनी भूमिका को दिखा
सकेंगे।
सौर उर्जा: सूर्य भी विद्युत शक्ति का असीमित साधन है।
सौरपैनल के द्वारा सूर्य के प्रकाश को विद्युत ऊर्जा मे बदल कर उपयोग में लाया
जाता है।
पवन उर्जा: हवा का उपयोग अभी तक केवल चक्की चलाने एवं
कुएँ से पानी निकालने के लिए ही हुआ है। परंतु जर्मनी एवं हॉलैंड के कुछ इलाको में
इसका उपयोग छोटे जनित्र का चलाने के लिए भी किया गया है, जिससे
विद्युत शक्ति उत्पन्न हो सकती है।
Ø
बिजली
की माँग दिनो दिन बढ़ती जा रही है और मनुष्य नए साधनों की खोज में लगा हुआ है, जिससे इस बढ़ती हुई माँग का पूरा किया जा
सके।
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