ऊर्जा
की परिभाषा देना थोड़ा कठिन है। ऊर्जा कोई वस्तु नहीं है। जिसको हम देख सकते हो, यह
कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया बनती है। संक्षेप में कहे तो, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुत से द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है।
ऊर्जा
के विभिन्न रूप
कार्य
कर सकने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। बहते पानी में ऊर्जा होती है जिसका उपयोग पवनचक्की चलाने में अथवा किसी दूसरे काम के लिए किया जा सकता है। इसी तरह बारूद में ऊर्जा होती है, जिसका उपयोग पत्थर की शिलाएँ तोड़ने अथवा तोप से गोला दागने में
हो सकता है। बिजली की धारा में
ऊर्जा होती है जिससे मोटर तथा अन्य एलेक्ट्रोनिक उपकरण चलाये जा सकते हैं। सूर्य के प्रकाश में ऊर्जा होती है जिसका उपयोग प्रकाशसेलों द्वारा बिजली की धारा उत्पन्न करने में किया जा सकता है। ऐसे ही अणुबम में नाभिकीय
ऊर्जा रहती है जिसका उपयोग शत्रु का विध्वंस करने या अन्य कार्यों में किया जाता है।
ऊर्जा
कई रूपों में पाई जाती है। खिचे हुए स्प्रिंग में जो
ऊर्जा है उसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं; बहते पानी की ऊर्जा गतिज ऊर्जा है; बारूद
की ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा है; बिजली की धारा की ऊर्जा वैद्युत ऊर्जा है; सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा कहते हैं। सूर्य में जो ऊर्जा है वह उसके ऊँचे ताप के कारण है। इसको उष्मा ऊर्जा कहते हैं।
कार्य
एवं ऊर्जा
विभिन्न
उपायों के द्वारा ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में
परिवर्तित किया जा सकता है। इन परिवर्तनों में ऊर्जा की मात्रा में किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं होता है। इसे ऊर्जा-अविनाशिता-सिद्धांत कहते हैं।
ऊर्जा
वह है जो उतनी ही कम होती जाती है जितना कार्य होता जाता है। इस कारण ऊर्जा को नापने के वे ही साधन होते हैं। जो कार्य को नापने के। यदि हम
एक किलोग्राम भार को एक मीटर ऊँचा उठाते हैं तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध एक विशेष मात्रा में कार्य करना
पड़ता है। यदि हम इसी भार को दो मीटर ऊँचा उठाएँ अथवा दो किलोग्राम भार को एक मीटर
ऊँचा उठाएँ तो दोनों दशाओं में पहले की अपेक्षा दुगुना कार्य करना पड़ेगा। इससे स्पष्ट होता है कि कार्य का परिमाण उस बल के परिमाण पर, जिसके विरुद्ध कार्य किया जाए और उस दूरी के परिमाण पर, जिस दूरी द्वारा उस बल के विरुद्ध कार्य किया जाए, निर्भर रहता है और इन दोनों परिमाणों के गुणनफल के बराबर होता है।
यांत्रिक
ऊर्जा
कार्य करने के लिए किसी भी वस्तु में उपस्थित रहने वाली गतिज ऊर्जा व स्थितिज ऊर्जा के योग को यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं।
किसी वस्तु में उसकी स्थिति और अवस्था के कारण उसमे जो ऊर्जा उत्पन्न होती है उसे
स्थितिज ऊर्जा कहते हैं तथा गति करती हुई किसी भी वस्तु या पिंड में जो ऊर्जा
उत्पन्न होती है उसे गतिज ऊर्जा कहते हैं।
ऊष्मीय ऊर्जा
ऊर्जा-अविनाशिता-सिद्धांत के
प्रमाणित हो जाने के बाद भी इसके दूसरे स्वरूपों का ज्ञान न होने के कारण यह समझा
जाता था कि कई स्थितियों में ऊर्जा नष्ट भी हो सकती है; जैसे, जब किसी पिंड के विभिन्न भागों में
अपेक्षिक गति हो तो घर्षण के कारण स्थितिज और गतिज ऊर्जा कम हो जाती है। ऐसी स्थितियों में ऊर्जा नष्ट नहीं होती बल्कि ऊष्मीय ऊर्जा में परिवर्तन हो जाती है। बहुत समय पहले मनुष्य लकड़ियों को रगड़कर अग्नि को उत्पन्न करता था, लकड़ियो को जितना अधिक रगड़ा जाता है उतनी ही अधिक मात्रा में ऊष्मीय ऊर्जा
उत्पन्न होती है। तथा जितना अधिक कार्य किया जाता है
ऊष्मीय ऊर्जा का उतना ही अधिक उत्पादन होता है।
विद्युत
ऊर्जा
उर्जा के
अन्य स्रोतों से विद्युत शक्ति का निर्माण विद्युत उत्पादन कहलाता है। विद्युत् शक्ति का उत्पादन, विद्युत्
जनित्रों (generators) द्वारा किया जाता है।
तार की एक कुण्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाकर विद्युत उत्पन्न की जाती है कुण्डली जितनी
तेज घूमेगी उतना ही ज्यादा विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।
विद्युत
का उत्पादन जहाँ किया जाता है उसे बिजलीघर कहते हैं। बिजलीघरों में विद्युत-यांत्रिक जनित्रों के द्वारा बिजली पैदा
की जाती है विद्युत शक्ति, जल से, कोयले आदि की उष्मा से, नाभिकीय अभिक्रियाओं से, पवन शक्ति से एवं अन्य कई विधियों से पैदा की जाती है।
ऊर्जा के
स्रोत
आधुनिक
भौतिक विज्ञान में प्रत्येक कार्य के लिए ऊर्जा को आवश्यक माना
गया है। ऊर्जा संरक्षण
सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और ना तो नष्ट
किया जा सकता केवल इसका स्वरूप बदला जा सकता है। हम अपने दैनिक जीवन में ऊर्जा का इस्तेमाल कई
रूपों में करते हैं, जैसे - यांत्रिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, रसायनिक ऊर्जा इत्यादि। मोटर के द्वारा विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल कर काम लिया जाता है तो बैटरी में रसायनिक ऊर्जा को
विद्युत ऊर्जा में। मानव शरीर खाद्य पदार्थों की रासायनिक ऊर्जा को पचा कर उससे
यांत्रिक कार्य करता है। इसी प्रकार एक विद्युत बल्ब विद्युत ऊर्जा को प्रकाय़ तथा
ऊष्मीय ऊर्जा में बदल देता है। कार या बस का ईंजन पेट्रोल भी रासायनिक ऊर्जा को पहले ऊष्मीय ऊर्जा में
बदलता है तथा उसे फिर यांत्रिक ऊर्जा में। इन सभी कार्यों के लिए प्रयुक्त ऊर्जा इन स्रोतों से प्राप्त होती है -
- · कोयला
- · पेट्रोलियम
- · प्राकृतिक गैस
- · पवन ऊर्जा
- · सौर ऊर्जा
- · ज्वारीय ऊर्जा
- · नदी घाटी परियोजनाएं
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