हिमालय भारत में स्थित एक बहुत प्राचीन पर्वत श्रृंखला है। हिमालय को पर्वतराज भी कहते हैं जिसका अर्थ है पर्वतों का राजा। कवि कालिदास तो हिमालय को पृथ्वी का मापक मानते हैं। हिमालय की पर्वतश्रंखलाएँ “शिवालिक” कहलाती हैं। सदियों पहले से ही हिमालय की गुफाओ में ऋषि-मुनियों का वास रहा है और वे यहाँ समाधि प्राप्त करके तपस्या करते हैं । हिमालय आध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र माना जाता है। उत्तराखंड को हिमालय राज का हृदय कहा जाता है। लाखो पर्यटक हर साल यहाँ की सुंदरता और मन को मोह लेने वाली शांति को प्राप्त करने आते हैं। ईश्वर द्वारा बनाई गयी हर खूबसूरती यहाँ विद्यमान है। हिमालय अनेक रत्नों का भी जन्मदाता है इसकी पर्वत-श्रंखलाओं में जीवन औषधियाँ उत्पन्न होती हैं हिमालय को अगर पृथ्वी का स्वर्ग कहा जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा। पृथ्वी में रहकर भी यह स्वर्ग की तरह उज्ज्वल है। हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक कोण की आकृति में लगभग 2400 किलोमीटर की लम्बाई में फैला हुआ है। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत 7 देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान,अफगानिस्तान , भारत, नेपाल, भूटान, चीन और म्यांमार।
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हिमालय (Himalaya) |
संसार की सबसे ज्यादा ऊँची
पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सबसे ऊंचे शिखरों में हिमालय
की अनेक चोटियाँ शामिल हैं। विश्व का सबसे ऊंचा शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय
में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से भी ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ
प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा,
शिवशंकर, गणेय, लांगतंग,
मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है।
हिमालय श्रेणी में 15
हजार से ज्यादा बर्फ के समूह (हिमनद) हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। हिमालय की कुछ प्रमुख
नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव
प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ,शाकम्भरी प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इन धार्मिक स्थलो का उल्लेख मिलता
है।
हिमालय का निर्माण - जहाँ आज हिमालय है वहां कभी टेथिस नाम का सागर हुकूमत करता था। यह एक लम्बा और उथला सागर था। यह दो विशाल
भू-खन्डो से घिरा हुआ था। इसके उत्तर में अंगारालैन्ड और दक्षिण में
गोन्ड्वानालैन्ड नाम के दो भू-खन्ड स्थित थे। लाखों वर्षों से इन दोनों भू-खन्डो
का कटाव होता रहा और कटे हुए पदार्थ
(मिट्टी , कन्कड , बजरी , आदि) टेथिस सागर में जमा होने लगे। ये दोनों विशाल भू-खन्ड एक-दुसरे की
ओर खिसकते भी रहे। दो विरोधी दिशाओ में पड़ने वाले दबाव के कारण सागर में जमी
मिट्टी आदि की परतो में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये मोड़ द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप
में पानी की सतह से ऊपर आ गए । यह क्रिया लगातार चलती रही और बहुत समय बाद यहाँ विशाल
वलित पर्वत श्रेणियो के निर्माण हुए जिन्हे आज हम हिमालय के नाम से जानते हैं।
लघु हिमालय
हिमालय पर्वत का वह भाग जो महान हिमालय के दक्षिण समानान्तर तक फैला हुआ है, लघु हिमालय
कहलाता है। यह मध्य हिमालय या हिमाचल हिमालय के नाम से भी पुकारा जाता है। लघु
हिमालय 80 से 100 किलोमीटर की चौड़ाई में फैला हुआ है। इसकी औसत ऊँचाई 1628 मीटर
से लेकर 3000 मीटर तक है। इसकी अधिकतम ऊँचाई 4500 मीटर है।
नामकरण
हिमालय संस्कृत के दो शब्दों - हिम तथा आलय से मिल कर बना है, जिसका अर्थ है बर्फ का घर। हिमालय और विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को भी कई नामों से जाना जाता है। नेपाल में इसे सगरमाथा (स्वर्ग का भाल), संस्कृत में
देवगिरी और तिब्बती में चोमोलुंगमा (पर्वतों की रानी) कहते हैं।
हिमालय पर्वत की एक
चोटी का नाम "बन्दरपुंछ" है। यह चोटी उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित है। इसकी ऊँचाई 13,731
फुट है। इसे सुमेरु भी कहते
हैं।
हिमालय की प्रकृति
उत्तरी भारत के मैदान गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के मैदान है। ये
नदियां हिमालय से ही निकलती हैं। हिमालय की श्रेणियां बहुत ऊंची होने के कारण मानसूनी
हवा को रोक लेती हैं जिससे हमारे राज्यों में वर्षा होती है। प्रातः काल जब सूर्य
उदय होता है तब सूर्य की किरणों से हिमालय की सुंदरता निखर आती है हिमालय पर्वत
ऊंचे ऊंचे देवदार, चीड़ के पेड़ों से भरा है यहां पर कई प्रकार के जंगली जीव भी पाएं जाते हैं
जैसे भालू, हाथी, चीता, गेंडा, बंदर, हिरन, आदि पशु यहां पर सुरक्षित अपना जीवन व्यापन
करते हैं।
हिमालय की उत्पत्ति
हिमालय के उत्पत्ति की
व्याख्या प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा की जाती है। पहले भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड नामक विशाल
महाद्वीप का हिस्सा था और अफ्रीका से सटा हुआ था जिसके विभाजन के बाद भारतीय प्लेट
की गति के परिणामस्वरूप भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का भूखण्ड उत्तर की ओर बढ़ा और लगभग 6000 कि॰मी॰ की दूरी तय की। यूरेशियाई और
भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव में बदल गया
परिणामस्वारूप (650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई। तब से लेकर अब तक लगभग 2500 किमी की भूपर्पटीय (पृथ्वी की
ऊपरी सतह) लघुकरण की घटना हो चुकी हैं। साथ ही भारतीय
प्लेट का उत्तरी पूर्वी हिस्सा 45 अंश के आसपास घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में
घूम चुका है।
इस टकराव के कारण
हिमालय की तीन श्रेणियों की रचना अलग-अलग काल में हुई जिसका विस्तार उत्तर से
दक्षिण की ओर है। अर्थात पहले महान हिमालय, फिर
मध्य हिमालय और सबसे अंत में शिवालिक की रचना हुई।
भूआकृति का विभाजन
हिमालय पर्वत तन्त्र
को तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जाता है जो पाकिस्तान में सिन्धु नदी के
मोड़ से लेकर अरुणाचल के ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक एक दूसरे के समानांतर पायी
जाती हैं। चौथी श्रेणी उत्तर में स्थित है जिसकी
लंबाई अन्य श्रेणियों की अपेक्षा कम है ये चारो श्रेणियाँ निम्न हैं:-
·
परा-हिमालय,
·
महान हिमालय
·
मध्य हिमालय, और
·
शिवालिक।
परा हिमालय जिसे ट्रांस हिमालय या टेथीज हिमालय भी कहते हैं, हिमालय
की सबसे प्राचीन श्रेणी है। यह कराकोरम श्रेणी, लद्दाख
श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच में
स्थित है। इसका निर्माण टेथीज सागर के अवसादों से हुआ है। इसकी औसतन चौड़ाई लगभग
40 किमी है।
महान हिमालय जिसे हिमाद्रि भी कहा जाता है हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। इसके गर्भ
में असख्य शैलें पायी जाती
है जो ग्रेनाइट तथा गैब्रो नामक चट्टानों के रूप में हैं। कश्मीर की जांस्कर
श्रेणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है। हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ मकालू, कंचनजंघा, एवरेस्ट, अन्नपूर्ण इत्यादि
इसी श्रेणी का हिस्सा हैं। पूर्वी नेपाल में हिमालय की तीनों श्रेणियाँ एक दूसरे
से सटी हुई हैं। परंतु ये तीनों अलग-अलग हैं।
मध्य हिमालय महान हिमालय के दक्षिणी भाग में स्थित है। महान हिमालय और मध्य हिमालय के
बीच पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी पायी जाती है। ये दोनों घाटियाँ खुली हुई हैं जम्मू-कश्मीर में इसे पीर-पंजाल, हिमाचल में धौलाधार, तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है।
शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं। यहाँ सबसे नयी और कम ऊँची चोटी
है। पश्चिम बंगाल और भूटान को छोडकर बाकी पूरे हिमालय के साथ यह समानांतर
पायी जाती हैं। अरुणाचल में मिरी, मिश्मी और अभोर पहाड़ियां
शिवालिक का ही रूप हैं।
हिमालय का महत्व
हिमालय पर्वत विविध
प्राकृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारणों से
महत्वपूर्ण है। हिमालय पर्वत का महत्व न केवल इसके
आसपास के देशों के लिये हैं बल्कि पूरे विश्व के लिये हैं क्योंकि यह ध्रुवीय
क्षेत्रों के बाद पृथ्वी पर सबसे बड़ा बर्फ का क्षेत्र है जो विश्व की जलवायु को
भी प्रभावित करता है। इसके महत्व को निम्नवत वर्गीकृत किया जा सकता है:-
प्राकृतिक महत्व
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उत्तरी भारत का मैदान
या सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान हिमालय से लायी गयी मिट्टी व नदियों के डेल्टा
से मिलकर निर्मित हुआ है।
·
हिमालय का सबसे बड़ा
महत्व दक्षिणी एशिया के क्षेत्रों के लिये हैं जहाँ की जलवायु के लिये यह एक महत्वपूर्ण नियंत्रक का कार्य करता है। हिमालय की विशाल
पर्वत शृंखलायें साइबेरियाई ठंडी वायु को रोक कर भारतीय उपमहाद्वीप को जाड़ों में आधिक ठण्ढा होने से बचाती हैं।
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यह पर्वत श्रेणियाँ मानसूनी पवनों के मार्ग में अवरोध उत्पान करके आस-पास
के सम्पूर्ण क्षेत्र में पर्वतीय वर्षा कराती हैं जिस पर इस क्षेत्र का
पर्यावरण और अर्थव्यवस्था निर्भर हैं।
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हिमालय में बर्फ से लदी
हुई असख्य श्रेणियाँ उपस्थित हैं जो हमेशा बहते रहने वाली नदियों का स्रोत हैं जिनसे भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश को महत्वपूर्ण जल
संसाधन प्राप्त होते हैं।
आर्थिक महत्व
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हिमालय में वनो संसाधनों का बहुत बड़ा भंडार है जो मुलायम लकड़ी वाली वनस्पति और शंक्वाकार वनों के
स्रोत के रूप में पाया जाता है। जिसका बहुउद्देशीय आर्थिक महत्व है।
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औषधीय पौधे, जड़ी-बूटियाँ तथा मजबूत लकड़ियाँ इत्यादि की प्राप्ति।
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चरागाह के रूप में भी हिमालय
का महत्व है क्योंकि इसकी घाटियों में नर्म घास वाले क्षेत्र पाए जाते हैं।
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विविध खनिजों, जैसे चूना पत्थर, डोलोमाईट,
स्लेट, चट्टानी नमक इत्यादि के स्रोत यहाँ प्रचुर
मात्रा में पाये जाते हैं।
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हिमालय में बहुत से फलों
की खेती की जाती है क्योकि यहाँ पर फलों की पैदावार के लिए उपयुक्त जलवायु उपस्थित
रहती है।
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सिंचाई के स्रोत के
रूप में सदावाहिनी (हमेशा बहने वाली) नदियों का जलस्रोत।
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पर्यटन उद्योग और बहुत
से पर्यटक केन्द्रों के लिये हिमालय जाना जाता है।
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जलविद्युत उत्पादन के
लिये।
पर्यावरणीय महत्व
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जैवविविधता भण्डार के रूप में हिमालय पर्वत काफ़ी महत्वपूर्ण है। कुछ जैव विविधता के
प्रमुख क्षेत्र के रूप में फूलों की घाटी तथा अरुणाचल का पूर्वी हिमालय क्षेत्र हैं।
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हिमालय के हिमनदों को
आज जलवायु परिवर्तन के प्रमुख संकेतक के रूप में भी देखा जा रहा है।
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