नाभिकीय अस्त्र या परमाणु
बम एक विस्फोटक पदार्थ है जिसकी विध्वंसक शक्ति का
आधार नाभिकीय
अभिक्रिया होती है। यह नाभिकीय संलयन (Nuclear fusion) या नाभिकीय विखण्डन (nuclear fission) या इन दोनो प्रकार की नाभिकीय
अभिक्रियों के सम्मिलन (मिलाकर) से बनाये जा सकते हैं। दोनो ही प्रकार की
अभिक्रिया के परिणामस्वरूप थोड़े ही सामग्री से भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। आज का एक हजार किलो
से थोड़ा बड़ा नाभिकीय हथियार इतनी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है जितनी कई अरब किलो के
परम्परागत (पुरानी) विस्फोटकों से भी न उत्पन्न किया जा सकता है। नाभिकीय हथियार
महाविनाशकारी हथियार (weapons of mass destruction) कहे जाते
हैं। क्योकि इनसे अपार उर्जा निकलती है जिससे बहुत बड़ी मात्रा में जन-धन की हानि
होती है।
द्वितीय विश्वयुद्ध में सबसे अधिक शक्तिशाली विस्फोटक, जो प्रयुक्त हुआ
था, उसका नाम 'ब्लॉकबस्टर'
(blockbuster) था। इसके निर्माण में तब तक ज्ञात प्रबलतम विस्फोटक
ट्राईनाइट्रोटोलुईन (TNT) का 11 टन प्रयुक्त (उपयोग) हुआ था।
इस विस्फोटक से 2000 गुना अधिक शक्तिशाली प्रथम परमाणु बम था जिसका विस्फोट टी.
एन. टी. के 22,000 टन के विस्फोट के बराबर था। अब तो प्रथम
परमाणु बम से बहुत अधिक शक्तिशाली परमाणु बम बने हैं। जो पूरी दुनिया को बर्बाद और
नष्ट करने में सक्षम हैं।
परिचय
परमाणु बम में
विस्फुटित होने वाला पदार्थ यूरेनियम या प्लुटोनियम होता है। यूरेनियम या प्लुटोनियम के
परमाणु विखंडन (Fission) से ही शाक्ति प्राप्त होती है। इसके
लिए परमाणु के केंद्रक (nucleus) में न्यूट्रॉन (neutron)
से प्रहार किया जाता है। इस प्रहार से ही बहुत बड़ी मात्रा में
ऊर्जा प्राप्त होती है। इस प्रक्रम को भौतिक विज्ञानी नाभिकीय विखंडन (nuclear
fission) कहते हैं। परमाणु के नाभिक के अभ्यंतर (अन्दर) में जो
न्यूट्रॉन होते हैं उन्हीं से न्यूट्रान मुक्त होते हैं। ये न्यूट्रॉन अन्य
परमाणुओं पर प्रहार करते हैं और उनसे फिर विखंडन होना शुरु हो जाता है। ये फिर
अन्य परमाणुओं का विखंडन करते हैं। इस प्रकार शृंखला क्रियाएँ आरंभ होती हैं।
परमाणु बम की अनियंत्रित शृंखला क्रियाओं के फलस्वरूप बहुत बड़ा विस्फोट होता है।
सामान्य
यूरेनियम में 99.3 प्रतिशत यू-238 (U-238) और 0.7 प्रतिशत यू-235 (U-235) रहते हैं। यू-238
का विखंडन उतनी सरलता से नहीं होता जितनी सरलता से यू-235 का विखंडन होता है।
यू-235 में यू-238 की अपेक्षा तीन न्यूट्रॉन कम रहते हैं। न्यूट्रॉन की इस कमी के
कारण ही यू-235 का विखंडन सरलता से होता है।
अन्य विखंडनीय
पदार्थ जो परमाणु बम में काम आते हैं वे यू-233 और प्लुटोनियम-239 हैं। शृंखला
क्रिया के चालू करने के लिए न्यूट्रॉन की न्यूनतम मात्रा ली जाती है। और फिर न्यूट्रॉन
की मात्रा को धीरे-धीरे बढाया जाता है। मात्रा के धीरे धीरे बढ़ाने से एक समय ऐसी
अवस्था आएगी जब कम से कम एक उन्मुक्त न्यूट्रॉन एक नए परमाणु पर प्रहार कर उसका
विखंडन कर देगा। ऐसी स्थिति पहुँचने पर विखंडन क्रिया स्वत: चलने लगती है। और
भयानक बिध्वंस शुरू हो जायेगा। परमाणु बम में विखंडन से यूरेनियम और उसे निकटवर्ती
अन्य पदार्थों का ताप बड़ी शीघ्रता से ऊपर उठता है। धात्विक यूरेनियम बड़ी ऊँची
दाब और ताप पर जलने वाली गैस में बदल जाता है। विस्फोटक बम्ब का ताप 10,00,00,000° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। इतने ऊँचे ताप पर
यूरेनियम की सुरक्षा कवर हट जाती है। तब सारा पिंड बड़ी प्रचंडता से विस्फुटित
होता है। परमाणु बम के विस्फुटित होने पर आधात तरंगें (Shock waves) उत्पन्न होती हैं जो ध्वनि की गति से भी अधिक गति से चारों ओर फैलती है।
जब परमाणु बम को पृथ्वीतल के ऊपर विस्फुटित किया जाता है तो तरंगें पृथ्वीतल से
टकराकर ऊपर उठती हैं और नया आघात उत्पन्न करती हैं जो ऊपर और नीचे तीव्रता से
फैलता है। भारत के पास 257 परमाणु बम्ब है। जो कि पाकिस्तान से कही अधिक है।
विस्फोटी यूरेनियम बाद में अन्य तत्वों में बदल जाता है, उससे
रेडियो ऐक्टिवेधी किरणें निकलकर जीवित कोशिकाओं को घायल कर उन्हें नष्ट कर देती हैं। बम का विनाशीकारी
कार्य (1) आघात तरंगों, (2) वेधी किरणों तथा (3) अत्यधिक
ऊष्मा उत्पादन के कारण होता है।
हाइड्रोजन बम
हाइड्रोजन बम
परमाणुबम का एक किस्म है। हाइड्रोजन बम या एच-बम (H-Bomb) अधिक शक्तिशाली परमाणु बम होता है। इसमें हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यू
टीरियम (deuterium) और ट्राइटिरियम की आवश्यकता पड़ती है। परमाणुओं
के मिलान करने (fuse) से बम का विस्फोट होता है। इस मिलान के
लिए बड़े ऊँचे, ताप, लगभग 500,00,000° सेल्सियस की आवश्यकता
पड़ती है। यह ताप सूर्य के ऊष्णतम भाग के ताप से बहुत ऊँचा है। परमाणु बम द्वारा
ही इतना ऊँचा ताप प्राप्त किया जा सकता है। अमेरिका, इंग्लैंड,
रूस, चीन व भारत ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण
किया। माना जा रहा हा कि उत्तर कोरिया ने भी ऐसा खतरनाक बम बनाया है।
जब परमाणु बम
आवश्यक ताप उत्पन्न करता है तभी हाइड्रोजन परमाणु में मिलन की प्रक्रिया शुरू होती
हैं। इस मिलन (fusion) से ऊष्मा और
शक्तिशाली किरणें उत्पन्न होती हैं जो हाइड्रोजन को हीलियम में बदल देती हैं। 1922
ई. में पहले पहल पता चला था कि हाइड्रोजन परमाणु के विस्फोट से बहुत अधिक ऊर्जा
उत्पन्न हो सकती है।
1932 में ड्यूटीरियम नामक भारी हाइड्रोजन का और 1934 ई. में ट्राइटिरियम (ट्रिशियम) नामक भारी हाइड्रोजन का आविष्कार
हुआ। 1950 ई. में संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति ट्रु मैन ने हाइड्रोजन बम तैयार करने का आदेश दिया। इसके
लिए 1951 ई. में साउथ कैरोलिना में एक बड़े कारखाने की स्थापना हुई। 1953 ई. में
राष्ट्रपति आइजेनहाबर ने घोषणा की थी कि TNT के लाखों टन के
बराबर हाइड्रोजन बम तैयार हो गया है। 1955 ई. में सोवियत संघ ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया। चीन और फ्रांस ने भी हाइड्रोजन बम के विस्फोट किए
हैं। और हाइड्रोजन बम के सफल परिक्षण किये हैं।
परमाणु परीक्षण
नाभिकीय अस्त्र
परीक्षण (Nuclear
weapons tests) या परमाणु परीक्षण उन प्रयोगों को कहते हैं जो डिजाइन एवं निर्मित किये गये नाभिकीय अस्त्रों के प्रभाविकता, उत्पादकता
एवं विस्फोटक क्षमता की जाँच करने के लिये किये जाते हैं। परमाणु परीक्षणों से कई
जानकारियाँ प्राप्त होतीं हैं ; जैसे - ये नाभिकीय
हथियार कैसा काम करते हैं; विभिन्न स्थितियों में ये किस प्रकार
का परिणाम देते हैं सन् 1945 के बाद बहुत से देशों ने
परमाणु परीक्षण किये। इसके अलावा परमाणु परीक्षणों से वैज्ञानिक, तकनीकी एवं सैनिक शक्ति का प्रदर्शन करने की कोशिश भी की जाती है।
·
सभी देश आज परमाणु
बम्ब बनाने और उनके परीक्षण करने के होड़ में लगे हुए हैं।
परीक्षण के प्रकार
परमाणु परीक्षण
कई तरह के होते हैं। हवा, जलगत और भूमिगत।
हवाई परीक्षण
हवा में किए
जने वाले परीक्षण खुले और निर्जन इलाके में या धरातल से कुछ ऊपर किए जते हैं।
आमतौर पर ऐसे परीक्षणों में उपकरण को ऊंची इमारतों, गुब्बारों, द्वीपों में या हवाई जहाज से गिराकर
परीक्षण किया जता है। इनके अलावा, कई बार रॉकेटों से दागकर भी कुछ परमाणु परीक्षण किए जा
चुके हैं। विस्फोट से बने मशरूम क्लाउड (गोलाकार बादल) में आसपास की चीजें खिंची चली आती हैं और इसकी वजह से रेडियोधर्मिता आसपास के क्षेत्र में फैलती है। और
जन-धन को हानि पहुंचाती है।
जलगत परीक्षण
इस तरह के
परीक्षण किसी जहाज या नौका की मदद से किए जते हैं। इन परीक्षणों को शत्रु की
नौसेना के जहाजों और पनडुब्बियों से मुकाबले की दृष्टि से किया जता है। इसके
अतिरिक्त, समुद्री युद्ध में
काम आने वाले हथियारों जैसे टॉरपीडो या डेप्थ चार्जर्स के शक्ति परीक्षण के लिए भी
किया जाता है। सागर तट के पास किए जाने वाले जलगत परीक्षणों से पानी में काफी रेडियोधर्मी तत्व मिल जाते हैं जो आसपास के जहाजों और
सागरीय जन-जीवन के लिए बहुत घातक होते हैं। जलगत परीक्षण में सागरीय जन-जीवन को बहुत
हानि होती है तथा बहुत से जीव-जन्तु मर जाते हैं।
भूमिगत परीक्षण
ऐसे परीक्षण
पृथ्वी की सतह में गड्ढा खोदकर या अन्य तरीके से किए जते हैं। अमेरिका और सोवियत
रूस ने शीत युद्ध के दिनों में अक्सर ऐसे ही परीक्षण किए थे। 1963 में इसके
अतिरिक्त अन्य परीक्षणों को लिमिटेड टेस्ट बैन ट्रीटी संधि के तहत निषेध कर दिया गया था। जब
ऐसे परीक्षण संपन्न होते हैं तो उसमें प्रयोग किए गए सामान से भूकंप का खतरा हो सकता है। अन्यथा इनसे खतरा
कम रहता है।
विश्व भर में
परीक्षण
बीसवीं सदी में कई देशों ने परमाणु परीक्षण किए थे। पहला परमाणु परीक्षण अमेरिका ने 14 जुलाई, 1945 में किया था जिसमें 20 किलोटन का परीक्षण किया गया था। अब तक का सबसे बड़ा परमाणु परीक्षण सोवियत रूस में 30 अक्तूबर 1961 को किया गया था
जिसमें 50 मेगाटन के हथियार का परीक्षण किया गया था। 25 मई, 2009 को उत्तरी कोरिया ने परमाणु परीक्षण किया था, जिसे विश्व के अधिकांश देशों ने निंदनीय बताया है। विश्व के परमाणु शक्ति
संपन्न राष्ट्रों ने अब तक कम से कम 2000 परमाणु परीक्षण
किये हैं।
भारत के परमाणु
परीक्षण
भारत ने सन् 14 मई, 1949 में पोखरण में पहला
परमाणु परीक्षण किया। दूसरा परमाणु परीक्षण सन् 1949 में
पोखरन में ही हुआ। उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये
होगा और यह परीक्षण भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया है। बाद में 11 और 13 मई, 1949 को पाँच और भूमिगत परमाणु परीक्षण किये गए और भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इनमें 45 किलोटन का एक तापीय परमाणु उपकरण शामिल था जिसे प्रायः हाइड्रोजन बम के
नाम से जाना जाता है। 11 मई को
हुए परमाणु परीक्षण में 15 किलोटन का विखंडन उपकरण और 0.2 किलोटन का सहायक उपकरण शामिल था।
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